हिन्दी - शब्दासागर भाग - 4 | Hindi Shabdasagar Bhag - 4
श्रेणी : भाषा / Language
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
62 MB
कुल पष्ठ :
589
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नकार १७३६
व्यवहार करती हैं, पर युरोपियन स्त्रियों धूल श्रार कीड़ीं-
पतंगों श्रादि से बचने तथा शोभा बढ़ाने के लिये करती हैं। .
प्राचीन काल में कहीं कहां श्रावश्यकता पड़ने पर पुरुष भी
इसका व्यवहार करते थे ।
क्रि० प्र०--उठाभा ।--डालना ।
खा उलटना - चहरे पर से नकाब हटाना ।
०--नकाबपाश - जिसके चहरे पर नकाब हो । जो चेहरे पर
नकाब डाले हा ।
(२. साड़ी या चादर का वह भाग जिससे स्त्रियों का
मुँह ढँका रहता है । घूँघट ।
क्रि० प्र० -इढाना ।--डालना ।
मुहा०--नकाब उलटना न मुह पर से घूंघट हटाना ।
नकार-संज्ञा पुं० [ सं ] (१) नया नहीं का बोघक शब्द या
वाक्य । नहीं । (२) इनकार । स्वीकृति । (9) लि !
श्त्तर ।
नकारची-संज्ञा० पु०ु दे० “नक्कारची”' ।
नकारना-कि० अ० [हिं० नकार+ ना ( प्रत्य० ) |) इनकार
करना । श्रस्वीकृत करना ।
नकारा -वि० [ फा० नाकार' ] खराब । बुरा । निकम्मा । जा
किसी काम का न हे ।
संज्ञा पु० दे० “नक्कारा” ।
नकाश-संज्ञा पु० दे० “'नक्काश'' ।
नकाशना1-कि० स० [ अ० नक्काशी ] किसी पदार्थ पर बेल बूटे
श्रादि बनाना । घातु, पत्थर श्रादि पर खोदकर चित्र फूल
पत्ती झादि बनाना ।
नकाशी-संज्ञा स्त्र। ० दे० “नक्काशी ” ।
नकाशीदा ए-वि० [ अ०नककाशी + फा० दार ] जिख पर नक्काशी
हे । बेल-बूटेदार ।
नकास।-संज्ञा पुं० दे० “नक्काश'” ।
नकासख्ना-कि० स० दे० “'नकाशना”' ।
नकासी -संज्ञा स्री० दे० “'नक्काशी”' ।
नकासीदार-वि० “'नकाशीदार”' ।
नकियाना|-क्ि० अ० [ हिं० नाक + आना (प्रत्य०) ] (१) नाक
से बोलना । शब्दों का श्रनुनासिकवत् उच्चारण करना ।
(२) नाक में दम श्राना । बहुत दुखी या हैरान होना।
उ०--दाय बुढ़ापा तुम्दरे मारे हम तो ध्रब नकियाय गयन ।
करत घरत कछु बनते नाहि न कहाँ जान झरु केस करन ।
प्रतापन।रायण ।
कि० स० नाक में दम करना । बहुत परेशान या तंग करना ।
नकीब -सज्ञा पु० [ अ० ] (१) वह मनुष्य जो राजाओं श्रादि के
झागे उनके तथा उनके पूर्वजों में यश का गान करता हुश्रा
चलता है । चारण। बंदीजन । भाट ।
।
।
ड टिक कफ पमदमनसमसननसमननपपयनामयननपप मिस लिन, दिन
न
)
नकुछतैछ
विशेष--बादशाहें या नवाबों के यहाँ के नकीश्र केवल सवारी
के श्रागे विरुदावली का बखान करते ही नहीं चलते, बल्कि
किसी को उपाधि या पद थादि मिढछने के समग्र झथवा
किसी बड़े पदाधिकारी के दरबार में थ्राने के पूर्व उसकी
घोषणा भी करते हैं ।
(२) कड़खा गानेवाला पुरुष । कड़खेत ।
नकुच-संश्ञा पु० [ स० |] मदार का बेड ।
नकुट-संज्ञा पुं० [ स० ] नाक ।
नकुरा[-संज्ञा पु० [ हिं० नाक + उरा (प्र०) ] नाक । नासिका ।
नकुछ-संश्ञा पु० [ सं० |] (१ ) नेवला नाम का प्रसिद्ध जंतु ।
विशेष --दे० “'नेवला”' । (२) पांडु राजा के चौथे पुत्र का
नाम जो झश्विनीकुमार द्वारा माद्ी के गभ से झत्पन्न
हुए थे ।
विशेष--महाभारत में लिखा है कि जिस समय पांडु शाप के
कारण अपनी दोनें स्रियों के साथ लेकर वन में रहते (थे
उस समय जब कु'ती का तीन लड़के हुए तग्र माद्री ने पांडु
से पुत्र के लिये कढ़ा था। उस समय कुती ने माद्री से कहा
कि तुम किसी देवता का स्मरण करो। दस पर माद्वी ने
'्रश्विनीकुमारों का स्मरण किया जिससे दे। बालक हुए ।
उनमें से बड़े का नाम नकुल श्रौर छोटे का सहदेव था ।
नकुल बहुत ही सुंदर थे श्राोर नीति, घम्मेशास्त्र तथा. युद्ध -
विद्या में बड़े पारंगत थे । पशुश्रों की चिकित्सा की विद्या
भी इन्हें ज्ञात थी । अज्ञातवास के समय जंब्र पांडव विराट
के यहाँ रहते थे तब नकुछ का नाम त'प्रिपाठ था श्रोर ये
गोएँ चराने का काम करते थे । युधिष्टिर ने जब राजसूय
यज्ञ किया था तब इन्देंनि पश्चिम की श्रोर जाकर महेत्थ
श्र पंचनद् श्रादि देशों को परास्त किया था, श्रौर तदुपरांत
द्वारका में दूत भेजकर वासुदेव से भी युधिष्टिर की श्रधी-
नता स्वीकृत कराई थी । इनका विवाह चेदिराज की कन्या
करेखुमती से हुझ्ना था जिसके गभ से निरमित्र नामक एक
पुत्र भी हुझा था ।
(३) बेटा । पुत्र । (४) शिव । महादेव । (श) प्राचीनकाल
का एक प्रकार का बाजा ।
वि० जिसका कोई कुछ न हा । कुछरहित ।
संज्ञा० पुं० [ अ० नुकल « चाट ] वह रस जो देपहर के
समय पुर श्रादि चलानेवालों को पीने के लिये दिया
जाता है ।
नकुछकंद-संज्ञा पु० [ सं० ] गंघनाकुली बा राखरा नामक कंद ।
नकुलक-संज्ञा पुं० [ सं० ] (१) प्राचीन काल का एक प्रकार का
गहना। (२) रुपया झ्रादि रखने की एक प्रकार की थैली ।
नकुछतैल-संश्ञा पुं० [ सं० ] वैद्यक में एक प्रकार का तेल जो
नेवले के मांस में बहुत सी दूसरी श्रोषधियाँ मिलाकर
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