वैदिक दर्पण | Vaidik Darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.23 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९
कया बिन नायक॑ के, कभी चरित्र बनेगा ?
क्या चित्रकार के बिन ही, चित्र बनेगा ?
क्या बिना बढ़ाई, बन जाएगा टेबल ?
क्या विन चिपकाए, चिपक जाएगा लेबल ?
जो बात तंक॑ पर टिके, मोनना चहियें। _
हो सत्य उसे ही, सत्य जानना चहिये ॥
«अर, ः शेर.
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: आकाश, समय, ' सामग्री के बिन धरती ।
यह कभी नहीं, बनपाती. नहीं उभरती ॥।
सांथ ही कल्पनां, कियें बिना बन जाना ।
है सुनो ! असंभव, बात समझ में आना ॥।
अब बतलाओ । कंल्पना करेगा जो भी ।
चैतन्य तत्व ही तो, ' फिर होगा वो भी ?
जड़तत्वों में, इच्छा न रहा करती है ।
कल्पना न, इनमें कभी बहा करती है ॥।
हु
ग . + नर
करिये विचार. कुछ बातें हमें कहते हैं ।
विन इच्छा के, हम क्यों संकट सहते हैं 1
_ हम जिया चाहते हैं, - क्यों मर जाते हैं ।
क्यों मरा. चाहते हैं--त, मर पाते हैं ?
'हों जाती वर्षा, -अनायास,.क्यों सुख की ?
क्यों अनायास, आ जाती घड़ियाँ दुख की ?
जो मनुज चाहता, काम क्रंभी होता है ?
जो नहीं चाहता, काम न भी होता है ?
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