वैदिक दर्पण | Vaidik Darpan

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Vaidik Darpan by मुन्नालाल मिश्र - Munna Lal Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ कया बिन नायक॑ के, कभी चरित्र बनेगा ? क्या चित्रकार के बिन ही, चित्र बनेगा ? क्या बिना बढ़ाई, बन जाएगा टेबल ? क्या विन चिपकाए, चिपक जाएगा लेबल ? जो बात तंक॑ पर टिके, मोनना चहियें। _ हो सत्य उसे ही, सत्य जानना चहिये ॥ «अर, ः शेर. >्ट : आकाश, समय, ' सामग्री के बिन धरती । यह कभी नहीं, बनपाती. नहीं उभरती ॥। सांथ ही कल्पनां, कियें बिना बन जाना । है सुनो ! असंभव, बात समझ में आना ॥। अब बतलाओ । कंल्पना करेगा जो भी । चैतन्य तत्व ही तो, ' फिर होगा वो भी ? जड़तत्वों में, इच्छा न रहा करती है । कल्पना न, इनमें कभी बहा करती है ॥। हु ग . + नर करिये विचार. कुछ बातें हमें कहते हैं । विन इच्छा के, हम क्यों संकट सहते हैं 1 _ हम जिया चाहते हैं, - क्यों मर जाते हैं । क्यों मरा. चाहते हैं--त, मर पाते हैं ? 'हों जाती वर्षा, -अनायास,.क्यों सुख की ? क्यों अनायास, आ जाती घड़ियाँ दुख की ? जो मनुज चाहता, काम क्रंभी होता है ? जो नहीं चाहता, काम न भी होता है ?




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