युगाधार | Yugadhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युग-युग का घनतम फटता है नव प्रकाश ग्राणों में भरता ं वृद्ध वीर बापू बह श्राया ी ं कोरि कोटि चरणों को घरता ! थे निद्रित भारत, जगा श्राज हैं यह किसका पावन प्रभाव है किसके करुणांचल के नीचे नि्भयता का बढ़ा माव हैं है नि डक हज नवचेतन को श्वास ले रहें हम भी आज जी उठे जग में , उठा लगाया हृदय-कंठ से चि. कि किक किससे पददलितों को मग में ? व्यथित राष्ट्र पर ाँचल करता जीवन के नव-रस-कन ढरता , बद्ध वीर बापू वह झ्ायां ...' कोटि कोटि चरणों को घरता ! न यह किसका उज्ज्वल प्रकाश है... थी नवजीवन जन जन में छाया , सत्य जगा; करुणा उठ बैठी सिमटी मायावी की माया , ..




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