प्रेम गंगा | Prem Ganga
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
173
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शेसन्तंगा च
इसी तरह पक पहर रात बीत गई । राजा की बेसेनी बढ़ती
चली गई । उनके साथ-साथ राजमदल के अंदर रहनेवाली सभी
खियाँ ओर दरबार की शोभा बढ़ानेवाले समस्त पुरुष बेसन
होने दंगे |
इसी समय राजा को स्मरण हुआ कि उनके यहाँ एक
कहानियाँ खुनानेबाला बहुत दिनों से नोकर है! उसने पक बार
उनके दुःख के दिनों में कितनी हो रखीली कहानियाँ सुना-सुनाकर
उनके दुःख-दूद को एकबारगी दूर कर दिया था । यह बात याद
अले दी उन्दोंने उसे घुछा मेजा ।
कहानीवाले ने जाते ही सलाम किया और बड़ी नघ्रता से
पूछा--'इस दास के अति घीमान की क्या आज्ञा है?”
राजा ने कहा--''प्यारे मित्र ! इस समय सुम्हीं मेरे प्कमान
अवलंब दो । मुम्बे प्रेस की रसीली कथाएं खुनाओ, और मेरे
दुःखित मन को शांति प्रदान करो। मु ऐसी कथाएं सुनाओो,
जिनमें प्रेम, प्रेमी भर प्रेतिका के विसित्र भावों ओर स्वभावों का
चणंग हो, और इस प्रेम के पीछे पड़कर म्ुष्य को कितना कष्ट
उठाना पड़ता है, इसका दिर्द्शोन भी हो ।”
यह सुनते ही कहानीवाठा ताड़ गया कि राजा को
छर कोई रोग नहीं, प्रेप्रनव्याधि लगी है। अभी नें ही उमर
है, हाल ही सिंहासन पर बेठे हें, यौवन का प्रिय सदयर मम
इदय में छहर भार रदा है ; ऐसी अवण्या में यद ब्याधि उपभी,
तो कोई विचित्र बात नहीं । यदद बड़े भारी प्रज्ञा-पाठक, सोलि-
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