अध्यात्म - अमृत - कलश | Adhyatm - Amrit - Kalash

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Adhyatm - Amrit - Kalash by जगन्मोहनलाल सिद्धान्तशास्त्री - Jaganmohanlal siddhantshastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्० अध्यात्म-अमृत-कलदा उसे आगममे असत्य क्यो कहा *? उत्तर है कि उसे ही परमार्थ समझना असत्य है ।”” पण्डितजीने सत्याथका अथे निजके लिये उपादेय तथा असत्यार्थका अर्थ निजके लिये अनुपादेय किया है । इसके पुर्वमे उन्होंने लिखा हे--'निजकी सत्तासे सम्बन्धित अपने ज्ञायक स्वभावको ही वह सत्यार्थ और निजको सत्तासे भिन्न समस्त द्रव्य क्षेत्र काल भावकों असत्या्थ मानता है क्योकि वे उसको सत्तासे अनुस्यूत नहीं हैं ।' जो निजकी सत्तासे अनुस्यूत है अर्थात्‌ आत्माके साथ तादात्म्य है वह सत्यार्थ है; दोष सब असत्यार्थ है । जो सत्याथ है वह निर्चयनयका विषय टहोनेसे निस्चयनय सत्यार्थ है । और व्यवहारनय असत्याथ है क्योकि वह परके सयोगसे जन्य नेमित्तिक भावोको भी वस्तुका स्वभाव कहता है । इसपर प्रदत और समाधान पण्डित जीने इस प्रकार किया है-- प्रदन--जब भात्मा वर्तमानमे प्रत्यक्ष ससारी, सदेही, कर्म-नोकमंभाव संयुक्त है तब इसे असत्य केसे माना जाये ? समाधान--यह असत्य नही है पर जीवकी यह पर्यायमात्र है, स्वभाव नही है संसारी दशा कर्मनिमित्त जन्य होनेसे नेमित्तिक विकारी दशा हैं। स्वाभाविक दक्ा तो इन सयोगोके दूर होने पर प्रकट होगी, अन्यत्रसे नहीं आयेगी । भागे एक प्रदन और समाधान इस प्रकार है-- प्रदन--शुद्धात्मामे भले ही रागादि न हो, अशुद्धात्मामे तो उनका अस्तित्व है । समाघान--अवद्य है भर उस दृष्टिसि वह सब सत्य ही है, असत्य नही है। किन्तु जड कर्मके निमित्तसे उत्पनन विकार आत्मस्वभाव न होनेसे आत्मद्रव्यकी गणनामे नहीं आता । अत शुद्धनयके द्वारा अपनी आत्माके सही शुद्ध स्वरूपमे वर्तमान दशामे पाये जानेवाले आत्मभिन्‍न विकारोक्ो ओोझल करके देखो । ऐसा करनेसे द्दी लक्ष्यकी प्राप्ति होगी ।' ऊपरके समाधानमे पण्डित जीने विकारकों जड कर्मके निमित्तसे उत्पन्न कहा है। यह केवल व्यावहारिक भाषा है। यथा थंमे उनका ऐसा अभिप्राय नही है क्योकि निमित्तकी चर्चा करते हुए उन्होंने लिखा है-- प्रइन--जब बिना कर्मोदयके विकार उत्पन्न नहीं होता तब उसका कारण तो कर्मोदय रूप परपदार्थ ही है । यदि स्वयके कारण हो तो सिद्ध भगवानुमे भी स्वयके कारण विकारी भाव उत्पन्न होना चाहिए । समाधान--ऐसा नही है । कर्म जड़ पुदूगल द्रव्य है । उसकी उदय रूप अवस्था कर्ममे होती है अत' कर्ममे हो उदय, उपझम, क्षय, क्षयोपदामादि पर्यायमेद बताये गये हैं। यदि कर्मका उदय जीवमे भी उदय रूप हो तो कर्मका क्षय होनेसे जीवका भी क्षय हो जायेगा । अत' सिद्ध है कि प्रत्येक द्रव्यमे अपनी-अपनी पर्याय स्वयकी, उस




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