श्रावकधर्मप्रदीप | Shrawak Dharm Pradeep

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Shrawak Dharm Pradeep by जगन्मोहनलाल सिद्धान्तशास्त्री - Jaganmohanlal siddhantshastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) बुद्धिमान श्रौर घर्मप्रेमी थे । इजारों व्यक्तियोंके बीच बेठकर ऐसे तकंपूर्ण व्यंग वचन बोलते ये कि पूरी सभा दस पढ़े पर स्वयं मौन । कटनीकी जनता श्राज भी उनको याद करती है । जीवनके शझन्तमें झापकों देखनेके लिए श्रनेक प्रमुख जैनजन श्रापके घर गए. थे । उसी समय श्रापने श्रपने छोटे भाइंकी इच्छानुसार प्रदय एक मकान तथा दनुमानगंजमें बहुत रुचिसे बनाया हुश्रा श्रपना एक कांचवाला मकान दोनों दानदेठु दे दिए । विंहुड़ी व घनियाँ गाँव भी दानमे दिये थे जो जमीदारी उन्मूलन कानूनके श्रन्तगंत राज्य सरकारने ले लिये हैं । उनके स्वरगंवासके पश्चात्‌ दोनों भाइयों की ध्मपत्नियों द्वारा उक्त संपत्तिका विधिवत्‌ रजिस्टडे ट्र करा दिया गया है | श्रोर उनकी उदारता व इच्छासि ही इसी ट्रष्टकी श्रोग्से १२० ०) एक इजार दोसौ रुपया इस प्रंथके प्रकाशन देठु श्री ग० वर्णी जेन अंधमाला काशीको दिय गये है जिससे यदद ग्रंथ प्रकाशमं श्ाया है । इस श्रुतमक्तिके लिए. हम उन दानों माताश्रों व ट्र के ट्राष्टयोंके अत्यन्त श्रामारी है । फूलचन्द्र शाख्री श्री ग० बर्णी जैन मन्थमाला सदेनीचाट, बनारस |




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