धीरे बहे दोन रे खंड 3 | Dhire Bahe Don Re Khand 3

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Dhire Bahe Don Re Khand 3 by गोपीकृष्ण 'गोपेश'- Gopikrishn 'Gopesh'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धीरे बहे दोन रे'* : १७ रेजीमेंटों का एक प्रत्तिनिधि तमककर वोला, “श्रौर मैं श्रापको वतलाना चाहता हूँ कि हम सब जानते हैं कि कंमे प्रतिमादान झादमी हैं वे ! बड़े शानदार जनरल हैं ! जमंनी की लड़ाई में वडा साम कमाया है उन्होंने ! भाईजान, ब्रांति न हो यई होती तो वे ब्रिगेडियर से थ्रागे तो बढ़ते नहीं ।” “श्राप जब जनरल श्रासनोव को जानते नहीं तो इतना सब कहने की आपको हिम्मत कैसे पड़ती है? ” जूनियर कंप्टन ने जरा बुक हुए लहजे मे जवाव दिया, “यानी श्रापका हियाव होता है ऐसे जनरस के बारे में इस तरह की बातें करने का जिसकी सभी जगह सभी लोग इतनों इंडजत करने हैं ? श्राप यह भूल जाते हैं कि श्राप हैसियत से महज एक करज़ाक हैं, प्रौर कुछ नहीं 1” बउ़ज़ाक थोड़ा मड़वड़ा गया । वुदबुदाया, “हुजूर, मैं सिफ़ें यह कहना चाहता हूँ कि मैंने खुद उनकी कमात में काम किया है। प्रास्ट्रिया के मोचे पर उन्होंने हमारे रेजीमेट को कॉटेदार तारों में भोंक दिया था । यही वजह है कि हम उनके वारे में कोई बहुत श्रच्छी राय नहीं रखते । मुमकिन है कि हमारी राय ग़लत हो ।” “तुम सोचते हो कि संत जाज॑ का श्रॉंग उन्हे यों ही दे दिया गया ? ” पेस्तेली श्रोघ के बारण मछली की हट्टी लगभग निगलते हुए श्रागे की पक्तिवाले श्रादमी पर टूट-सा पड़ा, “तुम्हे श्रादत हो गई है खुरपेच निका- लने वो । तुम्हारे लिए हर चीज़ बुरी है 1 तुम्हे वुछ भी सुदाता नहीं । अपर तुम्हारे जेंगे लोगों की जवान जरा कम लम्बी होती तो श्राज महू मुमीवत का पहाब ने होता हमारे सामने । तुम सहज वादुनी चिड़िया दो, श्रोर कुछ नहीं ।”” परुरा-का-पुरा,चेरकास्क जि ला भासनोव के पक्ष में निकला । द्वूडे जनरल को लोग बहुत पसंद करते थे । उनमें से फ्यादातर लोग रूसी-जापानी सड़ाई मे उनके साय हिस्सा ले चुक थे । श्ररूसर उसके झतीत वो लेकर पूल नहीं गमानि थे । जनरल गारद-घ्रफसर रहे थे । उन्हे दानदारं शिक्षा मिलो थी । वे दादी सदन श्रौर सम्राट की सेवा में रहे थे । उदारयेता बुद्धिवादी इस बात से सन्वुप्ट थे वि पासनेतर सिर्फ फोली एलरल हो न थे चल्वि सेसक भी थे । झफसरों के जीवन की उनकी कहानियाँ कितनी ही




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