धूप की लहरें | Dhoop Ki Lahren

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Dhoop Ki Lahren by गोपीकृष्ण 'गोपेश'- Gopikrishn 'Gopesh'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न बाग्देवी भारती! के मन्दिर में प्रविष्ट हों चुका हूँ । मेरे शूष की लहर मेरौ वन्दना क स्वर-स्वर दोहरा रही हैं, में अनुभव करता हूँ ! रात्रि का अन्धकार, 'सुबह का धृथलापनः, ओर “দুদ কী लहर' किसी भी , 'मन्दः कवि यश्ञः प्रार्थी के जीवन की तीन निश्चित धाराय हैं, में सोचता । गुलाब की निधि फल भौ द, कोटे भी । पथिक, यदि, पलों क सौन्दर्य और उनकी सुवास पर मुग्ध होता है तो वह कटिं कौ तीदणता क। अनुभव भी सुदूर तक करता है ! बस ! गोपीकृष्ण




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