सूर्यकान्त या वेदान्त - ज्ञान दर्शन | Suryakant Ya Vedant - Gyan Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शिव नारायण शर्मा - Shiv Narayan Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६छ
घन्यवाद प्राप्त सज्नोके पवित्र चरण कमलोंमें यद्द सूयंकान्त
मणि रखता हूं, घ्रह्मादि वेदान्त चिपयके अनेक ग्रन्थ वन छुके
हैं और बन रहे हैं, उनके रचयिता और अनुवादक बड़े बड़े
विद्वान हैं, उनके समक्ष मैं अव्पक्ष क्या लिख सकता हैं ।
परन्तु जिस दुर्जेका मैं अच्पन्ञ हूं, उससे नीचे दर्जेके भी कदाचित
अव्पन्न होंगे। जैसे पाउशालामे कोई वाठक अ आ पढ़ता
है, कोई ककहरा, कोई गिनती कोई पुस्तक आदि । उनमें जैसा
तार तम्य रहता है, वैसा दी सन्तोंमें भी रहता ही है । जैसे
गिनती पढ़ानेवाले को १ का अंक लिखाते हैं वैसे ही यह एकका
अंक समकिये | दो का अंक तो मैंने अभी पढ़ा भी नहीं, यही
एकका भंक गुरुजनोको शुद्धा शुद्ध दिखाने और छोटॉको अनु-
करण करनेको लिखा गया है। मैं सारे संसारको तो क्या
पहचानूँगा अभी तो मैंने अपने आप ( आत्मा ) को भी नही
पहचाना है, कि पूर्वेमें मैं कोन था और अब क्या हूं ओर मोझ्ष
किस प्रकार होगी अथवा आगे किस योनिमे मेरा जन्म होगा ।
मुक्त ऐसे अज्ञ पुरुषने £ तक जाननेवाले नवयुवक वच्चोको
रटानेके लिये पट्टी ( सेट ) रुप यदद चित्र चित्रित किया है।
. और यह चित्र ऐसे हो अधिकास्योंके छिये में अपेण करता
हूं। यह चित्र कैसा खिंचा है । यह जाननेके लिये समदर्शी
स्वसावके ज्ञानी पुरुषोंकी खेवामें उपस्थित करता हूं |
सददज जान प्राप्त होनेके लिये इस गल्पकी रचना इस
प्रकार की है, कि इसमें परतार्थ और आत्मदर्श दो प्रकारके
User Reviews
No Reviews | Add Yours...