गांधीवाद की शवपरीक्षा | Gandhiwad Ki Shawapariksha

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Gandhiwad Ki Shawapariksha by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाधीवाद का परिचय ] १५ इनकार नहीं कर सकते कि गावीवादी ऊाग्रे सी रामराज्य मे जनता का शोपण और दुरावस्था बढी है परन्तु वे जनता की दुरावस्था और शोपण की जिम्मेवारी गाधीवादी सत्य अहिंसा के कार्यक्रम पर नही रखना चाहते। उनका कहना है कि काग्रेसी सरकार गांवीवादी सिद्धातों से गिर गई है। यह्‌ बात अच्छा खासा मजाक मालूम होगी कि गांधी- वादी राजनीति को व्यवहार में लाने वाले सभी नेताओं में केवल क्ृप- लानी और मश्न्‌ वाला ही गाधीवाद को समभते हैं | सरदार पटेल, प० नेहरू, राजगोपालाचार्ण और क० एम्० मुन्शी यह स्वीकार करने के लिये तय्यार नहीं कि थे भाधीवादी नाति से गिर गय हैं या वे गावीबाद को सममभते नहीं । जनता जो शोषण और दुर्भाग्य शुगत रही है, वे गाधी- वाद के मूल, प्रयोजन, पूजीबाद के अधिकारों की रक्षा और उसे खुल खेलने का पूरा अवसर देने की नीति का अनिवार्य परिणाम है | यह बात दूसरी है कि मश्र्‌ वाला और कृपलानी अपनी सदूभावनाओं के कारण गाधीवाद से कुछ और ही आशा लगाये बैठे थे | सद्मावनाओं के जोर से ववृत मे आम नही भल सकते इसी प्रकार अन्तर-बिरोधों की अवस्था में पहुँच चुके पूजीबाद के रक्षक और समर्थक गाधीवाद्‌ का परिणाम जनता की मुक्ति हो हा नहीं सकती | इस रामराज्य के लिये काग्रेसी नेता गाधीवादी राजनीति की सफ्ञता का ही दावा करते हैं । , स्वयगाधी जीके शब्दो मे गाधीवाद कापरिचय इसप्रकार ই “मेरा यह दावा भी नहीं कि मैने फिसी नये तत्व या सिद्धान्त का आविष्कार क्रिया। मैंने तो जो शाश्वत सत्य है, उनको अपने नित्य के जीवन ओर प्रति दिन के प्रश्नों पर अपने ढग से उतारने का प्रयास मात्र किया है।” गाधी जो को उपरोक्त बात की समीक्षा करते समय, उनके विनय के प्रति यथोचित आदर करफ भी यह सत्य व्यान में रखना आवश्यक है कि मनुष्य समाज परिवर्तनशील है | इतिदास इस बात का साक्षी है कि मनुष्य समाज के जीवन निर्वाह के ढग सदा श्राज जैसे ही नहीं थे और न सामाजिक व्यवहार और न्यायके सम्बन्ध मे वाराणायें ऐसी ही थी । समाज की परिस्थितिया बढलती रहती है । परिस्थितियों के कारण व्यवस्था में परिवर्तन आता है | व्यवस्था को रक्षा करने बाली धारणाओं में परिवर्तन आवश्यक हो नाता है क्योंकि एक परिस्थिति और व्यवस्था




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