दयानन्दमत दर्पण | Dayanandmat Drpan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
350 KB
कुल पष्ठ :
18
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री जगन्नाथदास - shree Jagannathdas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही ( शु५
किसी का चाक्य के चाणों से मर्मस्थान मत छेदी ।
मघुर चाणी से निज्ञ भाशय के समभाभों चुग्दोओं नी ॥६०॥
पराये मांस के खाकर जो तन अपन्ना- बढ़ाता हैं ।
नरक का .चहद कमातां है न ज्ञीयों के सताशो जी 7 ६१॥
सनातनधघमानलम्बियों से निवेदन ॥
जनेऊ छोड़कर तुमने गा कंठी से वंघवाया ।
करो उपनयन मथवा नाम शूद्रों में लिखाशो जी ॥ €२ ॥
जो घन बेटी पे लेते हैं निकाला उनका जाती से ।
हैं यदद भी काम खोटा दी सगाई जो छुड़ामों जी ॥ ६६ ॥
फिरो .हा। पूजते फबरोक्ा क्या अज्ञान छाया है ।
चिंघाद की भादि में दूछदका क्यों खर पर चढ़ाओ जी ॥९४॥
ज्जुए का खेलना छोड़ो जी लेश्याओं से मुंद मोड़ो ।
खड़ा दुष्कर्म हैं छड़केां से प्रीति मत बढ़ागों जी ॥ ६५ ॥
फरे खर्डन तुम्हारा और छक्कर तुम से घन मांगे ।
उन्हें देदेके तुम चन्दा च्रूथा घन क्यों लुटाओो जी ॥ 8६ ॥
जो रक्षा धर्म की चाही मेरे श्रन्थों का फहइलाओ ।
नहीं फिर मन में पछ़िताओो कुढ़ों और दुम्ख पाभोजी ॥ ६७0
दयानन्दी गपोड़ों से चचाओं धर्म के अपने ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...