द्विवेदी काव्यमाला | Divadi Kavyamala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“दीपक निकट पत्तग की छाया सम सब जानि ॥ संत्त सच्चिदानदपद सेचहि वन सन ग्गनि ॥ मायामय करियी प्रबल लू. जगदन्धन दप्ड ॥ रूभिभानी लन्त करा गज सदसमन प्रचरण्ड ॥ अ्ा्सहि पुनि पूनि निरद्ड ता हें बारम्दार । न सुजन विचार ॥ चेंधि मनोय्य हिय गये होत सु यौवन नास । गुणटठू सकल गृणज्ञ बिन रहे न एक्ट पास ॥ सम अपर न कोड जग सहनाकर बलवान 1 अवथि चुकाल कराल चलि निवन करहियों शन ॥। मोह तिमिर नादयक युगुल परन प्रकानक पांव ॥ ब्वहूं नहिं नेये सुचित हरि नन्दिर महँ जाय डिगरी को अब काह हि मूद घिगारत बाप 1 जानि पत्तित सिरमौर निज ररु चुनाम की जाप ॥ अतिसुन्दर उपवन सघन मिलत पन्थ के माँह्ि । मदर प्रूलफ्ल भूमि पे उपजत हैं सब ठाँहि ॥ ट मग झरु क्ेैहरि फिियट्नाडा जानि संघ काल मूंग रु केहरि वसचवर सुलभ जानि सब काल 1 ि् प्डपिन्र मदलन्घ जग परि निल या जात न नन्द हात मदलन्च जग पार 'नित माय्य जाल हो अहों सुनिय विनवों बलब्लपट मिंरि-छोह गृह दन पलास के पात्त ! दब ए सच मम निरवाह हित भूलभ सदेव दिखिात ॥ जरजर त्तर चतलण्ड की कन्या ऊर कोपीन । भिलादयन निशिप्त नित प्रिय परिवारविहीन सदा निरंडूडा _ यात मन वसिदों विपिन सच्चान 1 योग सहोत्सव म्हि थिर वर दिवेक दिज्ञान !1




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