द्विवेदी काव्यमाला | Divadi Kavyamala
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
458
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“दीपक निकट पत्तग की छाया सम सब जानि ॥
संत्त सच्चिदानदपद सेचहि वन सन ग्गनि ॥
मायामय करियी प्रबल लू. जगदन्धन दप्ड ॥
रूभिभानी लन्त करा गज सदसमन प्रचरण्ड ॥
अ्ा्सहि पुनि पूनि निरद्ड ता हें बारम्दार ।
न सुजन विचार ॥
चेंधि मनोय्य हिय गये होत सु यौवन नास ।
गुणटठू सकल गृणज्ञ बिन रहे न एक्ट पास ॥
सम अपर न कोड जग सहनाकर बलवान 1
अवथि चुकाल कराल चलि निवन करहियों शन ॥।
मोह तिमिर नादयक युगुल परन प्रकानक पांव ॥
ब्वहूं नहिं नेये सुचित हरि नन्दिर महँ जाय
डिगरी को अब काह हि मूद घिगारत बाप 1
जानि पत्तित सिरमौर निज ररु चुनाम की जाप ॥
अतिसुन्दर उपवन सघन मिलत पन्थ के माँह्ि ।
मदर प्रूलफ्ल भूमि पे उपजत हैं सब ठाँहि ॥
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मग झरु क्ेैहरि फिियट्नाडा जानि संघ काल
मूंग रु केहरि वसचवर सुलभ जानि सब काल 1
ि् प्डपिन्र मदलन्घ जग परि निल या जात न
नन्द हात मदलन्च जग पार 'नित माय्य जाल हो
अहों सुनिय विनवों
बलब्लपट मिंरि-छोह गृह दन पलास के पात्त !
दब
ए सच मम निरवाह हित भूलभ सदेव दिखिात ॥
जरजर त्तर चतलण्ड की कन्या ऊर कोपीन ।
भिलादयन निशिप्त नित प्रिय परिवारविहीन
सदा निरंडूडा _ यात मन वसिदों विपिन सच्चान 1
योग सहोत्सव म्हि थिर वर दिवेक दिज्ञान !1
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