भवभूति | Bhavbhuti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ सवचूति
सतश्व अ्रस्या समयसुरूपाचारविमुद्वः
भ्रसकरते यतः प्रभर्वानि पुनरेंवसपरस 11
(मारकसी-साधव, ४४
कथ ्् न्प्
लि शापका जो स्मेह हैं,
७
हू भगवति, शिशु सालनी के
उसने आपके संसार से विरक्त सतत को सी आदर कर दिया है
द्सीजिये आप प्रब्रब्याश्न स. कव्यों से मंद माइकर सालनी के
लिये यत्न कर रदी हैं
कासंदको के कामों को देखने से सातदम होता हैं कि उस
समय ई्दू-घन का अम्युद्य होना ारंख हो रया था, बौद्ध
जागा से हिंदू देवी-देवताओं की उपासना छारंस कर दी थी !
माहानी-माघव के तीसरे चंक में लिखा है कि कामंदकी ने साली
को उसको सांभकय-बुद्धि के निसित्त 'चतुदशी के दिन शिव की
रूजा करने के लिये फूल चुनने को भेजा था 1 वास्तव में यह बड
नसय था कि जब वौद्ध लोग इस घान का निश्चय नहीं कर सके
पे कि वे वौद्ध घ्म का अजुसरण करे या डौद धम्से का । गौइ़-
इंश के सुप्रसिद्ध कवि रासचंद्र कवि-सारती “भिक्तिशतक”- नंथ के
गारंभ में, वद्ध को नमस्कार करें या शिव को, इस बात का
नेणय नहीं कर सके । बह लिखते हैं---
ज्ञान यस्य सुसस्तवस्तुविषयं यर्यानवद्य वचा
यस्सिद रागलवोर्थप सैव ने उुसद्ेंगो न सोहस्तथा 1
यर्या हेतुरनन्तसश्वसुखदा नच्पाझुपामाधुरी
बुद्दो वा रिरिशोध्थवा सा भगवॉस्तिस्स नसस्ठुमंदे ॥
“जिसे सब विषयों का ज्ञान है, जिसका वाक्य निर्दोष है,
ससमें राग, ढेष और स्नेह की एक दूँद भी नहीं है, जिसकी कपा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...