जागरण | Jaagaran
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२६ जागरण
जैसे उसके मातृत्व के शवाधार पर एक भ्ौर कील ठुक गई ।
पर कहना तो था ही । उससे बचत कहां थी ? रायसाहब का कड़ा
“चेहरा याद झ्राया ।
किसी भी प्रकार रायसाहब मान नहीं सकते थे । वे बड़े क्तेव्यपरा-
यण पिता ग्रौर पति थे, पर इन सब बातों से ऊपर वे राजभक्त थे । उनकी
धारणा के अ्रनुसार श्रंग्रेज़ वतंमान युग के देवता थे । एक श्रंग्रेज़ बुरा हो
सकता था, दस श्रंग्रेज़ बुरे हो सकते थे, पर सारे भ्रंग्रेज़ मिलकर कभी बुरे
नहीं हो सकते थे । रायसाहब को समभाना श्रसम्भव था ।
इसीलिए यह होना ही था ।
जब दोनों के बीच की चुप्पी बिल्कुल श्रसहनीय हो गई, तब उषादेवी
ने कहा--बेटा, मेरा जी झब घर में नहीं लगता । तू मुझे कहीं तीरथैयात्रा
के लिए ले चल ।
राजेन्द्र समभ नहीं पाया कि यह किस ढंग का आक्रमण है । उसकी
सतकंता कूछ ढीली पड़ गई। बोला--मां, तुम कैसी बात करती हो ?
काशी से बढ़कर कौन-सा तीथ॑ है ? यह नगरी तो भगवान शिव के त्रिशयुल
पर बसी है ॥
“बेटा, मेरा मन काशी से ऊब चुका है। अरब मेरा मन घर में नहीं
खगता ।
राजेन्द्र ने देखा, मां सचमुच दुखी है । उसकी सारी सतकंता जाती
रही, बोला--मां, तुम चर्खा काता करो । इसमें खूब मन लगता है । सारे
दुख भूल जाते हैं। चख की श्रावाज़ में कुछ ऐसी भधुरता है कि मन रम
जाता है । जाने कहां-कहां के विचार झ्राते हैं । जिन बातों को कभी देखा
नहीं, सुना नहीं, सोचा नहीं, यहां तक कि पढ़ा भी नहीं, वे बातें प्रत्यक्ष
होकर सामने श्रा जाती हैं । मन इतने ऊंचे सुर में बंध जाता है कि इच्छा
होती है बस चर्खा कातता चलूं, कातता चलूं श्रौर कभी न रुकू ।
उषादेवी की श्रांखों से ग्रांसू की दो बूंदें लुढ़क पड़ीं । जल्दी से उन्हें
पोंछकर हंसती हुई बोलीं--बेटा, तु सभाश्रों में कही जाने वाली बातें मुझसे
'भी करने लगा ।
-'नहीं मां। किसी सभा में किसीने यह बात कभी नहीं कही । वे
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