बायोकेमिक चिकित्सा सार | Biochemic Chikitsa Saar

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Biochemic Chikitsa Saar  by एम. भट्टाचार्य - M. Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ं चेज्ञानिक-तत्त्व , ह्व है और ये दोनी ही पदाथ खुनमें पाये जाते हैं, जेसे-(क ) जैव- उपकरण--मेद, अंडलाल और शर्करा । ( ख ) जल और अजैच- उपकरण--पोटास; केससियम, सिलिका, लौह, सोडियम और सैस्ने- शियम | इन सब पार्थिव-लवणोके ठीक-ठीक रहे बिना; जेव उपकरण सब स्वाधीन-भावसे कोष और तन्तुओका निर्माण नहीं कर सकते । कोई तन्ठ॒ या समृची देह जल जानेपर; जलीय भाग वाष्प ( भाफ ) के आकारमसें बदल जाती है और अद्दय हो जाती है; जेव-उपकरण सब अंगारमें परिणत हो जाते हैं और पार्थिच-लवणोका जलकर बचा हुआ भाग भस्म-रूपमें पडा रहा करता है । बाघोकेलिक चिक्त्साका सूलू-सूच जीव-देहमें जेब और अजेव पदार्थोंका रासायनिक सयोग है । इन सबोकी क्रियाकी गडबडी या किसी एकका अभाव होनेसे ही शरीर रोग- अस्त हो जाता है । जीव-देहका यह स्वभाव प्रकृत अवस्थामे है या नहीं इसका निणंय करना और नहीं रहनेसे उसको स्वाभाविक अवस्थासे लाना : ही वायोकेमिक चिकित्साका उद्द इंय है । इसी 'न्विकित्सा-शाख्रके असुसार रोगको दूर करना ही वायोकेमिक नच्चिकित्सा है । बायोकेसिक दवाएं और -उनका -प्रघोग इसके पहले हमलीगोने देखा है कि शरीरके निर्माण और धारणके 'लिये सभी उपकरण रक्तके सहारे सब शरीरमें फेलते हैं । ये सभी उपकरण धमनीका शरीर भेदकर आस-पासके तन्तुओमसें आकर मिल जाते हैं । जब पार्थिव-लवण उपयुक्त परिमाणमें शरीरमें रहता है; उस समय सभी तन्तु और कोष अपनी स्वाभाविक अवस्थामें अपना-अपना कार्य किया करते हैं, ऐसी' अवस्थामें मनुष्यका स्वास्थ्य भी एकदम ठीक रहता है !




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