कविता - कौमुदी भाग - ७ | Kavita Kaumudi Bhag - 7
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
67 MB
कुल पष्ठ :
636
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कृपानाथ मिश्र - Kripanath Mishr
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रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'य' का उच्चारण 'ह' होता हैं। यथधा--पद्य > पद ।
'्र' को छोड़कर सभी वँगला स्वरों का उच्चारण हिन्दी के स्वरों
के समान होता है. ( उच्चारण में बंगला के दीर्घ स्वर लघु 'होते चले
जा रहे हैं, यह बात दूसरी है ।) । ं
झ' का उच्चारण बहुत कठिन हैं । इसके भलीसमाँति समकने पर
'बगला उच्चारण झ्ासान हो जाता हैं ।
'त्र* एक तालव्य स्वर है ।
तालब्य स्वर उसे कहते हैं, जिसके उच्चारण में जीभ तालु से लगे
या लगने पर हो । तालव्य स्वर दो अ्रकार के होते हैं--(१) अगर
तालव्य, (२) उत्तर तालव्य । याद स्वर के उच्चारण में जीभ ताल
ऑम्रभाग से लगे या लगने पर हो तो उसे अगर तालव्य कहते हैं । यदि
जीभ ताछु के उत्तर भाग से लगे या लगने पर हो तो उसे उत्तर
'सालच्य कदते दे ।
डिन्दी, युजराती, मराठी में “अर अगर तालव्य स्वर है | बंगला “झर'
उत्तर तालव्य स्वर है। अथात बंगला “अर के उच्चारण के समय जीस
का अग्रांश तालु के उत्तर (पिछुले) अंश से लगेगा, तब जो स्वर
निकलेगा, वद्द बंगला का “झा स्वर होगा ।
बँगला से कमल का उच्चारण केँमेंल के तुत्य सले ही हो, कोसोल
'कभी नहीं होता । कोमोल में “श्र* का उच्चारण झोषजात होता हे और
बंगला में 'अ्र' तालव्य है । कुछ दूर तक बंगला सें अर का उच्चारण
«3
1101, 00 मे दूखा जाता हू
प्र्येक व्यक्न में “अर” का उच्चारण होता
अन्तिम व्यक्षन में “अर” का उच्चारण नहीं होता । अर्थोत् कंमेल,
लेकिन केंमेंलें नहीं ।
यदि श्रन्तिम वब्यज्ञन 'त' हो तो उसके 'झ' का उच्चारण होता है;
यथा--बिगत >-बिंगतिं ।
एससी
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