लघु - सिद्धान्त - कौमुदी भैमीव्याख्या भाग 1 | Laghu Siddhanta Kaumudi Bhaimivyakhya Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Laghu Siddhanta Kaumudi Bhaimivyakhya Bhag - 1  by भीमसेन शास्त्री - Bhimsen Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भीमसेन शास्त्री - Bhimsen Shastri

Add Infomation AboutBhimsen Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[१५] (२) मम्यास-- इस ग्रन्थ की दूसरी वड़ी विशेषता अम्यास हैं । प्राय: प्रत्येक प्रकरण वा गवान्तर-प्राकरणिक विपय के अन्त में 'अम्यास' जोड़ दिया गया है । ये अभ्यास साधारण पुस्तकों के अभ्यासों की तरह नहीं हैं, किन्तु महान परिश्रम से जुटाए गये अभ्यास हैं। सन्धिप्रकरण के अम्यासों मे आप ऐसे अनेक उदाहरण पाएगे--अजो अन्यत्र मिलने दुर्लभ हैं । इसी प्रकार अन्य अभ्यासों में थी विद्याधियों की ज्ञानवद्धि के लिये अनेक भ्रमोह्पादक रूप भ्रमोच्छेदपूर्वक बड़े परिधम से सड्गहीत किये गये है, इन्हें देख कर घिद्ृत्ममाज को निश्चय ही सन्तोप होगा । हमारी यह धारणा है कि यदि इन अम्यासों को कोई छात्र युक्तरीत्या अभ्यस्त (हल) कर ले तो वह साघारण सिद्धान्तकौमुदी पढ़े-लिखे छात्र से कहीं अधिक व्युत्पन्न होगा । विद्याधियों को इन मभ्यासों का पुनः-पुन: मनन करना चाहिये । व्याख्यागत सभी चिद्षिप्ट बातें प्राय: इन अभ्यासों में प्रदनरूप से पूछ ली गई है । (३) शब्दसुची-- इस व्याख्या की तीसरी असाधारण विक्षेपता है--णब्दसुची । आपको आज तक के मुद्रित व्याकरणग्रन्थों में इस प्रकार का प्रयत्न कहीं भी किया गया नहीं मिलेगा । इन णव्दसुचियों का उद्देश्य विद्यारथियों को. भनुवादादि के लिये अत्यन्त उपयोगिडव्दसड्ग्रह प्रदान करना है । इन सूचियों में प्राय: दो हजार (२०००) चुने हुए दाब्दों का. सार्थ सदग्रह किया गया है । इन में से कई सुचियां तो अत्यन्त कठोर परिश्रम से सड्ग्रह की गई हैं । दाब्दों के प्राय: लोकप्रचलित प्रसिद्ध अथ ही दिये गये हैं। विशेष विज्षेप स्थानों पर काव्य-कोप आदि के वचन भी टिप्पणरूपेण दे दिये हैं । विद्यार्ियों के सुभीते के लिये णत्वप्रक्रियानिर्देशक चिह्न भी सर्वत्र लगा दिये हैं । (४) भमव्ययप्रकरण-- इस व्याख्या की चौथी वड़ी तथा सब से अधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता है-- शर्वययप्रकरण । माप को कहीं भी इस प्रकार की व्याख्या सहित यह प्रकरण देखने को नहीं मिलेगा । प्रत्येक अव्यय का विस्तृत अर्थ उस का साहित्यगत उदाहरण [जहां तक हो सका है किसी प्रसिद्ध सुक्ति वा सुभापित को ही चुना गया है] तथा तद्ठिपयक विस्तृत्त दोधपूर्ण टिप्पण श्राप इस प्रकरण में देख सकेंगे । लघुकौमुदी के डेढ़ पृष्ठ का यह प्रकरण इस व्याख्या के ७८ पृष्ठों में समाप्त हुआ है । प्रथमसंस्करण में जहां इस व्याख्या में तीन सी अव्ययों का संकलन था वहां अब द्वितीयसंस्करण में सवा पांच सौ अच्ययों का व्याख्यान किया गया है । इस प्रकरण के कई अव्यय तो बड़े विवाद का बिपय चने हुए हैं--उन सब का भी यथास्थान पूर्णरीत्या स्पष्टीकरण किया गया है । और चाटुकारित्ता से राजकीय सम्मान भी पा लिया पर उन्हें ज़रा भी लज्जा नहीं आई कि जिस का माल चुरा रहा हूं उस का कहीं परोक्ष रूप से नामनिदंदा तो कर दूं--यह्द है आज के युग के लेखकों की नैतिकता ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now