रूकिमणी - विवाह | Rukmini Vivah

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Rukmini Vivah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पथ कथारम्म यद्द सममकता था कि हम नरेश हैं, रांजा हैं, हमारे लिए उचित श्ननुचित, न्याय श्न्याय और धम पाप की कोई मयादा नहीं है। हमारा जन्म दो, शन्ले अच्छे रतों का भोगोपभोग करने को हुसा है शोर इसके लिए दम जो कुछ भी करें, वद्दी उचित, न्याय श्ौर धर्म है । कृष्ण, शियुपाल के इन विचारों में वाधा- रूप थे । दूसरा कारण कृप्ण से बेर मानने का, मगध नरेश अरासन्ध से उसकी मैंत्री थी ।. शियुपाल, जरासन्ध का भिन्न मित्र था ध्बौर जरासन्ध, कृप्ण से शयुत्ता मानता था । कृष्ण ने, जरासन्ध के दामाद कंस को मार कर, जरासन्व की पुत्री को' विधवा वना दिया था । इसी कारण जरासनत्थ के लिए कृष्ण शब्रुरूप थे । इनके सिवा एक कारण श्र भी था, जिससे शियुपाल कृप्ण को अपना श्ु समकता था । जब शिझुपाल का जन्म इु्मा था, तब किसी से यह भविप्यवाणी की थी, कि इस चालफ की सृत्यु इसी के मामा के पुत्र कृष्ण के द्ाथ से होगी । शियुपाल की माता, यह भविष्यवाणी सुन कर चड़ी दु खित हुई ।. वह, शि्युपाल को लेकर छापने भाई चसुदेव के यहाँ या । उसने, शियुपाल को कृप्णु की गोद में ढाल दिया शरीर भविष्यवाणी सुना कर कृंप्णु से प्राथना की, कि आप अपने इस भाई को श्रभय कीजिये । कृप्ण ने, श्रपनी फूफू को घैय बेधा कर कहा, कि में श्रपने इस भाई के एक दो ही नहीं, कि तु ९५९




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