महात्मा पद - वाची जैन ब्राह्मणो का संक्षिप्त इतिहास | Mahatma Pad-vachi Jain Brahmano Ka Sankshipt Itihaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४) का बद्दीड़ा जो राज भी सहकमें खाम में खोस श्रीजी दजूर के दरतखतों का है उसमें दर्न है । वि०्स'० १६४५में करनल सी. कं. एस. बाल्टर साइच चहदादुर एजेन्ट गवनेर जनरल राजपूताना मु० आवू ने एक सभा वास्ते कायदा राजपूत सरदारों के राज- पूताना में सपने नास से क्रायन की । चुनाचे उसकी शाखा उदयपुर में भी कायम हुई वि. स'० १६४६ उसमें मेस्यर सदार इस मुझाफिक मुकरिर हुए। वेद्लने राव बहादुर रावजी तख्त- भिदजी व रावतजी जोधानिदजी सलूम्बर, देलवाड़ राज राणा फत्तहसिंहजी राय बद्दादर, व महताजी राय पन्नालालजी सी अंडे, इ, मेस्बर व सेक्र टरी व सद्दामद्दीपाध्याय कविराज शा- मलदासजी, व सद्दी वाला अजु नसिइजी, व पुरोहित पद्मानाथ- जी, द गव बख्दावरजी, यह 'ाठ मेस्वर मुकरि हुए । इस सभा में तरक्की देकर महताजी मोधूफ ने इस व्यक्ति की महकमे खाम से यहीं बदजी करदी । फिर बिं० सं० १६४७ में काला- वाड़ में काड़ोल च ठीकानें मादड़ी के दरमीयान मौजे थद्का- लिया के चराड़ का तनाजा थां, उसकी तद्दकीकात पर भेजा गया। साथ में सढार, पहरा, छट, चपरासी दरकारा धोडा था | चहां तहकीकात करता था उस समय राजश्री सहकमें खास से रु० नं० ११७३ सबरणधा चेत सुद १४ बि० स० १६४७ 'सिद्धश्रो श्री वख्तावरज्ञाल्लजी महात्मा जोग राज श्री महकमे खार्स लि. अप्र'च' सादिर हुआ, और भी राज के महकमें जात व अझन दालतों को तहरीरें इस माफिक जारी हैं। अदालत सदर दिवा+ नी, मुन्सफी व पुलिम बगेरा से “ लिद्धमो मददातमाजी श्रीव- रुनावरलालजी योय । वि» सं. १६४५८ में वास्ते पमाइन




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