आधुनिकता और समकालीन रचना संदर्भ | Aadhunikta Aur Samkaleen Rachna Sandrab
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२०. आधुनिकता प्रौर समकालीन रचना-सदर्भ
एक ऐसी दृष्टि है जो भ्रस्तित्व के बुनियादी प्रश्नों तथा सपूर्ण मानवौय व्यत्तित्व से
श्रपना गहरा सरोकार बनाए है । इस दृष्टि के श्रस्तगेंत जहां एक शोर सानव व्यक्तित्व
की स्वतन्त्रता समाहित हैं तो दृश्नरी ग्रोर मानवं-मुक्ति की गतिशील धारणा भी ।
इसमें एक प्रोर स्वच्छरद रूप से झत्मननिणय वी स्वतवता की विद्यमादता है तो
दूसरी झोर मानव-मूक्ति को कामना की सक्रियता भी । ग्राधुनिकता की यहं धारणा
एक और सामाजिव दर्शन से, सामाजिक यथार्थ से जुडती है तो दूसरी ग्रोर श्रस्तित्व
दर्शन से, श्रस्तित्वगत स्थितियों के यथार्थ से । झाधुनिकता के अन्तर्गत जिस यधाथे की
स्वीकृति है, उस का स्वरूप बड़ा जटिल ग्रौर पैचीदा है । विभित्त विचार-घाराएं
इस यथा को सप्तकन में सहायक हो सकती हैं, लेकिन, किसी एक दर्शन या विचार-
धारा के बल पर इस ययवाथ वो पुरा-पुरों पकड़ पाना कटिन है । घ्ाघुनिकता को
तनाज़ा है कि वादा के दायमरों से बाहर निकल कर इस जटिल यथार्थ और उलभी
हुई मानव प्रति को समभा जाए प्रौर उस की पहचान पायी जाए । केवल व्यक्ति-
बद्ध यथायें था ग्रेस्तित्ववादी ढंग वा. यथार्थ म्राधुनिकता का पर्याय नहीं है । इठी
तरह केवल सामाजिक यथार्थ या मानव मुक्ति की किसी प्रगतिवादी या श्रन्य किसी
“दादी धारणा तक प्राघुनिकता को सीमित नहीं किया जा सकता । भाधुनिकता
ययार्य॑ के इन दो पहलूश्नो से हो नही, धन्य कई पहनूपो से भी जुडी है । एक पहलू
वो सुलना मे दूसरे पहलू को तरह देता प्रापघुनिक विचार बी नीव को हो दहां
देना है ।
श्राधुनिक्ता वो खडों में विभाजित बे नहीं समभा जा सकता । एके ढंग
का श्राघुनिकन्योब मानवीकृत है झोर दूसरे ढय का घ्रवसानवीक्रत, यहू वर्गीकरण
ध्रारोपित दृष्टि का परिणाम है । यथाय या श्रययाय, वाश्तवित्र या प्रयास्तविष्र,
सही या गलत वे लेवल श्राघुनिकता पर नहीं चिपवाएं जा सबने । यह कोई ठोस
झचल पदार्थ नहीं जिसे टुकड़ों में वाटा जा सके । यहू एक सश्तिप्ट व्यापार है जिस
में प्तव गुण, अनेक विशेषताएं, श्रनेव प्रवुत्तियाँ विरोयात्सक स्थिति में, एक साथ
विद्यमान रह सकती हैं । यह दावा वरना कि एक ढंग को विद्यपानता ऑ्राधुनितता है,
ट्रमरे ढग वी नहीं, भ्राघुनिक रचना वी जटिलें मूजन प्रति थों समभनें से इस्लार
वरना है भ्ौर भाधुनिकता वो सवीर्ण मत्तवाद के शिकने में वसना है ।
इघर एव बड़े पमाने पर नगरों --महानगरों का भ्राघुनिकीवरण हुप्रा है ।
कहना चाह तो दमे श्राघुनिवता कर परिवेश या संदर्भ कह सवत हैं। इसवा स्जेव,
वलावार वे साथ एक श्रटूट रिश्ता है। लेसव को समनाहसव चेतना पर जाने-
अनजाने इस वा प्रभाव पता है । यह प्रभाव जितना सपन श्रौर गहन होगा श्ौर
उस वी भ्रमिव्यक्ति जितनी सुदम धर प्रमूर्त-कलात्मत्र होंगी उतनी हो वह रघता
भाघुनिरनवोष के सप्रेपण में सफल होगी । वाह परिवेश के प्रति स्यूल ढंग की
प्रतिक्रिया व्यक्त मरने वाली या उसवा रेसावत छीचने वाली रघनाएं श्राघुनिव-दोप
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