ठाण | Than

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Than by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१८ ) चिनयशीलता, अम-परायणता भर गुर के प्रति घुर्णे समपंज भाव ने इसकी प्रगति में जड़ा सहयोग काफी पेनी हो गई है । इनको इस बुसि में क्रमश. जधघंसानता ही पाई है । जिया है। यह बृत्ति इसको अचपन से हो है । जब से मेरे पास आए, मैंने इसकी कार्य-कामता और कस ब्यपरता ने मुझे बहुत सम्तोव दिया है। मैंने अपने संघ के ऐसे दिव्य साधू-साष्वियों के बल-बूते पर हो आयम के इस गुरुतर कार्य को संठाया है। अथ मुत्ते विदयास हो गया है कि मेरे शिव्य साधघु-सा न्थियों के निःस्थार्थ, विनीत एवं समर्पणास्मक सहयोग से इस बहुत कार्थो को असाधारणकप से सम्पस्त कर सकंगा । भगवान्‌ महावीर की पचीसवी निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को राष्ट्रभावा हिन्दी में जनता के समक्ष प्रस्तुस करते हुए मुझे अनि्वेचनीय आनन्द का अनुभव होता है। जयपुर गायायें लुलसी २०३२, निर्वाण शताब्दी वर्ष




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