शतपथ ब्राह्मण हिन्दी विज्ञान भाष्य | Shatpathbhrahmana Hindiviganbhashya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस अवस्था में उदय फभेफंगा रद को सा सा इनार्सपसे वोध नहीं होत। । इसलिए इस अवस्था का छुचारुरुप से . इस सच्चालन करने के लिए किसी श्रमिभावक की अपेक्षा होती है । दुभाग्य से यदि यह अवस्था बालक बिना नियन्त्रण के निकाल देता है तो वह भ्रागे जाकर सवेधा लक्ष्पच्युत हो जत्ता है । इस लिए मातापिता का यह . झवायक कततव्य है कि जब तक वाभक १६ वर्ष का न होजाय तंत्र तक ही लालनादूवहवां दोषास्ताड़नादू बहवा गुण अतः शिष्य च पुत्रं च ताइयेन्नतु लालयेत्‌ ॥ इस सिद्धान्त को लक्ष्य में रखेत हुए बालक के ऊपर मधुर शासन करे अनुचित स्नेह के वशी भूत होकर जो माता पिता बालक की उपयुक्त ._ अवस्था म उपेत्ता कर देते हे--भाग जाकर वह बालक माधुवयस्क होता. हुआ सर्वथा उच्छूंखस एवं अमयीदित बनता हुआ मात पिता के पृ्ापश्चात्ताप॑ को कारण बनजाता दै, जिसका | के प्रस दे प्रयेक घर बन रहा है । बतलाना इस भाव मधान ही रहता है। सोलह वर्ष तक समझा (बुद्धि) भाती नहीं; समझ नहीं; _ तो छुतरां नासमक्री ( भ्ज्ञान ) का प्रमुत्व सिद्ध हो जाता है! अज्ञान से बढ़े कर और मबल असर कौन होगा । इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि. . झात्ममजापति के दायभाग रूप इस शरीर पर 1६ वर्ष तक असुरों का ही.




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