हिन्दी एकांकी उदभव और विकास | Hindi Ekanki Udbhav Aur Vikas

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Hindi Ekanki Udbhav Aur Vikas by डॉ. रामचरण महेन्द्र - Dr. Ramcharan Mahendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्ु कहानी तथा उपन्यासों की ओर जन रुचि अपेक्षाकृत अधिक होने के कारण हिन्दी एकाकी की धारा कुछ मत्द सी रही, किन्तु. वह निरन्तर चलती रही । इस काल के एकॉकियों पर हिन्दी-नाट्य आलोचकों ने कोई प्रकाश नहीं डाला है । कत्तिपय आलोचको, जिनमें सर्वश्री डा० नगेन्द्र, डा० सत्येद्र, सद्गुरुदरण अवस्थी, प्रकाशचन्द्र गुप्त, डा० सरनामर्सिह शर्मा “अरुण इत्यादि प्रमुख है, ने अपने विवेचनों मे केवल श्री जयलकर प्रसाद के “एक घट” सात्र का ही उल्लेख किया है, जबकि उसी काल मे अन्य नाट्यकार भी एकाकी-साहित्य का निर्माण कर रहे थे । प० रावेइघाम कथावाचक, तुलसी दत्त बदा, मंगला प्रसाद विश्वकर्मा, जयदेव शर्मा, सियारामशरण गुप्त, आनन्दी प्रसाद श्रीवास्तव, ब्रजलाल शास्त्री एम० ए०, रामर्सिह वर्मा, सरयूप्रसाद “विल्दू' शिव रामदत्त गुप्त, हरिशिकर शर्मा: जी० पी० श्रीवास्तव; रूपनारायण पाड, सुदर्शन, रामनरेश न्रिपांठी, वदरीनाथ भट्ट वी० ए०५ इत्यादि लेखकों ने रगमचीय एकाकी के विकास में कितना अधिक सहयोग प्रदान किया है, इसका किसी आलोचक ने उल्लेख नहीं किया है । प्रस्तुत निवन्ध में प्रथम बार द्ववेदी-कालीन एकांकीकारो की कृतियों की खोज, वर्गीकरण और विस्तुत विवेचन प्रस्तुत किया गया है । इस युग का एकाकी साहित्य प्राय पुरानी पत्र-पत्रिकाओं, जैसे सुधा, सरस्वती, मर्यादा, इन्दु, प्रभा, कहानी-माला इत्यादि मे विखरा हुआ सिला है। उसको सामाजिक, ऐतिहासिक, राष्ट्रीय, पौराणिक आदि वर्गों मे विभाजित कर अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। उपलब्ध अनुवादो का भी यथास्थान उल्लेख किया भा । यह भाग हिन्दी एकाकी विकासक्तम की स्यद्धला की दृष्टि से महत्व- पूर्ण है। आधुनिक युग मे अंग्रेजी भाषा के अध्ययन तथा अग्रेजी एकाकीकारों के अनुकरण पर नई थैली के हिन्दी एकाकी का विकास प्रारभ हुआ है। इस टेकतीक का प्रयोग हिन्दी एकाकी जगत्‌ में एक सवीन दिला का सूचक चना है। पुराने सस्कृतत या द्विवेदी-कालीन पारसी रंगमचीय आदर्थों का परित्याग कर युगान्तरकारी नए एकाकी के प्रयोग प्रारम्भ हुए । पर्याप्त भध्ययन एवं अनुभव के परचात्‌ हिन्दी एकाकीकारो ने इस माध्यम को अपनाया तथा विकास की ओर अग्रसर हुए । इस निवन्घ में नवीन दौली के एकाकी लेखकों, उनकी विपयगत एव कला सम्वस्घी विजेपत्ताओं तथा एकाकी का क्रमिक विकास प्रस्तुत किया गया है। ऐतिहासिक दृष्टि से विवेचन को प्रामाणिक बनाने के लिए एकाकियो के प्रकाबन की लिधियों का विद्येप ध्यान रखा गया है । प्रत्येक प्रयोग-कालीन एकाकीकार की विपय- गत तथा टकनीक सम्बन्वी विशेषत्ताओ पर आलोचनात्मक प्रकान डाला




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