झलकियाँ | Jhalkiya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jhalkiya by डॉ. रामचरण महेन्द्र - Dr. Ramcharan Mahendra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. रामचरण महेन्द्र - Dr. Ramcharan Mahendra

Add Infomation About. Dr. Ramcharan Mahendra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पहला परिच्छेद युगान्तकारी साहित्य सेवा “जब मैं रेवेन्यूट्अफ़्सर था--[ १६४४-१६४६ ) सलामो और লাই के डर के मारे घर के बाइर बहुत कम निकलता था। जहाँ निकला कि सलाम की भद्ध वंध जाती थी फिर घन्दों यह बात और बह वात के बाद कहीं मतलब की बाव आती थी | एक दिन कचहरी से आकर कपड़े उतार कर फ्रैके सदा की भाँति खाली जांधियवा और वनियाइन पहने आँगन में चित्त हो ग़या । देखा कि सेय नत्हा सा भाज्ञा फूल-प्रफल्ल कुमार-जो उस समय आठ बरस का था अपनी बाइसिकिल बाहर निकाल रहा है मगर निकाल লী দানা | मैं नंगे पैर उठा बाइणिकिल बाहर निकाली और फिर उसको उस पर चढहाना सिखाने জমা | इतने में एक तागा सड़क पर झुका | उस पर बैठे हुए सज्जन ने द्यथ के इशारे से मुफे बुलाया और लगे पूछने - গাল यही है? श्रीवात्तवजी घर पर हैं १ कब्र मिल सकते हैं ? केसे লিল सकते हैं... .......बगेरह बरैरह मैंने सम्रक्ा कि यह लोग मुझदसंवाले हैं या किसी मुकदमे में सिफारिश करने आये हैं, इसलिये में बराबर यही कहता रहा कि आप अपना मतलब तः बताइये | इतने में दूसरे साहब ने जेब से एक चबन्ती निकालकर मुके दी और कह्ा-- माई हमलोंग बड़ी दूर से उनके दर्शनों के लिए आये हैं | किसी तरह जल्दी ले उनसे मुलाकात करा दो तो इमलोगों को যু ट्रेन मिल्ल जायेगी [?




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now