घोर अंधकार के बाद जीवन में नया प्रकाश | Ghor Andhkar Ke Baad Jivan Mai Naya Prakash

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Ghor Andhkar Ke Baad Jivan Mai Naya Prakash by डॉ. रामचरण महेन्द्र - Dr. Ramcharan Mahendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वे गिरे! गिरकर उठे, उठकर चले ! १७ शन्रुके सिपाही उधर आये, किंतु खोहपर मकड़ीका बुना हुआ ` जाला देख वापस छोट गये । जब जाला है, तो अंदर कोई केसे हो 'सकता है ? आयी हुई मौत तो वापस छौट गयी, पर ब्रूसको एक गहरे विचारमें निमग्न छोड़ गयी ! ` बह अब सोच रहा था, “जब यह मकड़ी वार-बार गिर-गिरकर भी निराश ओर परास्त नहीं हुई, तो मैं तो मजबूत हाथ-पाँववाल आदमी हूँ | मै तो बहुत कुछ कर सकता हूँ । मैंने कैसी गलती की कि तीिक-सी हारसे निराश हो गया ओर प्रयत्न करना छोड किस्मतको दोष ইন জা | ভু कायरता आ गयी । उसने मेरी अची ताकरतो- को शिथिल कर्‌ दिया । लेकिन यह मकड़ी सुञ्चे नयी प्रेरणा दे गयी है | अब मै फिर पूरी ताकतसे प्रयत्न करूंगा | मैं अवश्य जीतूँगा | मै अपने शत्रुओंको जरूर परास्त करूगा; क्योंकि इत मकड़ीने मेरा संकल्प मजबूत कर दिया है |! वह खोहसे निकल आया। अव वह बिल्कुल बदला हुआ नया आदमी था। वह चुपचाप छौट गया। अपने बिछुड़े हुए साथियोंको संगठ्ति -किया जर अन्तमं विजयी हआ । । ब्रूसके जीवनका निष्कर्ष निम्न पंक्तियोसे स्पष्ट होता है - क्षनुष्यका विकास कठिनाइयोंसे सदा लड़ते रहनेसे होता है। जो व्यक्ति कठिनाइयोंसे जितना दूर मागता है, वह अपने- आपको उतना ही निकम्मा वना लेता है और जो उन्हें जितना ही आमन्त्रित करता है, वह अपने-आपको उतना ही वीर और साहसी




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