जैन जागरण के अग्रदूत | Jain Jagran Ke Agradut
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
608
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अयोध्याप्रसाद गोयलीय - Ayodhyaprasad Goyaliya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ये ठेदी +वेटी रेखाएं
हमारे यहाँ तीर्थ डूरोका प्रामाणिक जीवन-चरि 1, आचायेकि
कार्य-कलापकी तालिका नही, जेन-संघके लोकोपयोगी कार्योकी सूची
नही; जैन-सम्राटो, सेनानायकों, मन्रियोके बल-पराकम और थासन-
प्रणालीका कोई लेखा नहीं, साहित्यिकों एव कथवियोका कोर पश्चिय
नहीं । औौर-तो-और, हमारी आँखोके सामने कल-परसों गूजरनेवाली
विभूतियोका कहीं उल्लेख नहीं, और ये जो दो-चार बडे-वूढ़ें मौतकी
स्ौखरपर खरे है; इनसे भी हमने इनके अनुभवोकों नहीं सुना है, और
झायद भविष्यम दस-पाँच पीढीमे जन्म लेकर मर जानेवालों तकके लिए
परिचय लिखनेका उत्साह हमारे समाजको नहीं होगा 1
प्राचीन इतिहास न सही, जो हमारी आँखोके सामने निरन्तर गजर
रहा है, उसे ही यदि हम वटोरकर रख सके, तो शायद इसी बटोरनमें
कुछ जवाहरपारे भी आगेकी पीढीके हाय लग जाएँ । इसी दृष्टि से---
बीती ताहि विसार दे श्रारेकी सुध लेहिं
नीतिके अनुसार सस्मरण लिखनेका डरते-डरते प्रयास किया । डरते-
डरते इसलिए कि प्रथम तो में सस्मरण लिखनेंकी कलासे परिल्ित
नहीं । दूसरे अत्यन्त सावधानी वरतते हुए भी यत्र-तथ्र आत्म-विज्ञापनकी
गर्व-सी माने लगी । नौसिखुआ होनेके कारण इस गन्थकों लिकालनेमे
समर्थ न हो सका । तीसरे मेरा परिचय क्षेत्र भी अत्यन्त सकचित गौर
सीमित था । फिर भी साहस करके दो-एक संस्मरण, पचोको भेज दिये 1
प्रकाशित होनेपर ये अनसँवरी टेढी-मेढी रेखाएँ भी अपनोकों पसन्द
भाई, और उन्हीके भाग्रहपर ये चन्द सस्मरण और लिखें जा सके 1
इन सस्मरणोको ज्ञानपीठकी ओरसे पुस्तकाकार प्रकाशित करनेकी
चात उठी तो मुक्के स्वय यह प्रयत्न अधूरा और छिललोरापन-सा मालूम
देने लगा । “इन्ही महानुभावोके संस्मरण क्यों प्रकाशित किये जायें
लमुक-अमुक महानुभावोके सस्मरण भी क्यो न प्रकाशित किये जाये ? ”
यह स्वाभाविक प्रश्न उठना लाजिमी था । लोकोदय-ग्रन्यमालाके विद्वानु
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