समालोचना | Samalochna

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Samalochna by पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ससालोचना । श७ हाथकी वह पैनी कटार उनके जराजीर्ण शिथिल पेटमे घुसेड़ दी । दीपक बुन्त जानेसे घरसे अन्घकार हो गया । उस अन्घकारमे उस पारकी नाव पर चटकर कविने सरत्वतीके साथ दादाकी सेंटका जो करण दृश्य अकित किया है बह ससार भरके साहित्यमे अपनी तुलना नहीं रखता । दादाका चरित्र अक्ति करनेमे जिस कारीगरी, कृतित्व और मानव-चरित्रके गहरे ज्ञानका परिचय दिया गया हैं वद्द प्रत्येक देशके श्रेष्ठ नाटककारके लिए गोरवका विषय हो सकता है । दादाकी सत्युके चाद दूसरे ही दिन सरस्वती * उस पार ” दादाके पास नीच प्रकृति स्वामीके कल्याणकी कामना करते गरते चली जाती है । सगवान- दासके जीवनसे भी पूरा परिवर्त्तन हो जाता हैं । एक दिन माताके साथ उसने जो बुरा व्यवहार किया था उसके लिए उसे घोर पछतावा होता है। वह अनेक स्वानोमे माताको खोजता फिरता अन्तको एक मसानमे उपस्थित होता ह और वेइ्या मुन्नीकी कृपासे उस पार जगदम्बाके हृदयसे साताके दर्शन पाता है । चरिन्न-विन्छेषण । अब हम सक्षेपमें प्रवान पान्नोके चरित्रोंका विदठेषण करके इस नाटवका मम समन्नानेकी चेष्टा करेंगे। इस नाटकमे ख्री-चरित्र चार हैं--सरस्वती, सुन्नी, लक्ष्मी और हीरा । सरस्वती नतिक सौन्दर्यकी आदर्श है। सरस्वती वह आदर्श ख्री नहीं है जा लात खाकर प * करके भाग जाती दे, आर ' तू ” करके पुकारनेसे पुंछ उलाती हुई परों पर आकर लोट जाती हैं। सरस्वती वह आदर्श ख्री है जो माताके दोषी पतिको फटकार बताती है, भटके हुए स्वामीको कर्त्तव्यकी राह दिखाती दे, पतिके असट्य अत्याचारकों चुपचाप सह लेती हें; उह-हीन आश्रय-हीन पतिका साथ देती है और पतिके प्राण बचाने के लिए वेखटके फॉसी पर चढ़ जाती हु । इत्तनी बडी आदर्थ-पत्नी, जान पडता है, ससारके किसी भी साहि- त्यम नही टू । सरस्वतीने माना अपने हृदयका सारा स्नेह अपने दादाकों नि हूं । ससुराल जानेके पहले दिन शीघ्र ही होनेवाले दादाके बिछोहका ख- साय करकं वह उन्दीके बारेमे सोचती है । यहीं उसकी प्रधान चिन्ता है सि




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