जीवन का मूल्य | Jivan Ka Muly
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झअसम्मच कथा श्भृ
घारगी श्रथवा पक दिन में नदीं तय हुई । खुवह शाम कई
दिन ठगातार भट्टाचार्यजी फो गिरीश के घर से प्रभावती के
घर श्रौर मभावती के घर से गिरीश के घर जाना पड़ा ।
इघर कई दिनों से घरावर गिरीश प्रभावती फे रूप का
ध्यान कर घानन्द-सागर में गोते लगाते रहे। उन्हें केवल री
ही मिलने की खुशी न थी; किन्तु 'घनवान होने की भी खुशी
थी । उनका विश्वास था कि इस विवाह के हो जाने से सच-
मुच ही कोई न कोई राजा उन्हें गोद ले तेगा अथवा गवर्नमेणट
श्पने गज़ट की श्रागामी संख्या में उन्हें राजा की उपाधि
श्रदान करेगी ।
जिस दिन विवाद पक्का हुआ उस दिन गिरीश फी घुझा
के झानन्द की सीमा न रही । सिंरीश को तरह-तरह के श्राशी-
चादि देने लगीं । दोनों फन्याश्रों से कददतीं, “तुम्हारी नयी मां
श्रायेगी । चह घड़ी सुन्दर होगो। तुम सब को खूब प्यार
करेगी । '्रच्छी-शाच्छी चीज़ें खाने को देगी ।'” इत्यादि । बड़ी
लड़की फी प्रवस्था नौ घर्ष की थी । छोटी श्रभी ध्वार ही चर्प
की थी। दादी के सामने तो वदद दोनों कुछ न घोलीं । दूसरे
दिन सप्रेरे पर्कात में दोनों यों थातें करने ठगीं--
चूची ने कह्दा--“दोदी, या छुचमुच हमाली नई मा श्राफर
दम लोगों को खूब प्याउ कलेगी १”?
पूरी ने कहा-“जो ऐसा ही होता तो भौंखना ही
फादे का था। पमल्ी, कहीं सौतेली माँ भी प्यार करती है ?
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