अनेकान्त | Anekant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
133
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनेकान्त/54/3-4 13
1. नगराजिसदूश क्रोध- अर्थात् पर्वतशिला भेद सदृश क्रोध। इसे उदाहरण
द्वारा समझाते हुए कहा है कि जैसे पर्वत शिलाभेद किसी भी दूसरे कारण से
उत्पन्न होकर पुन: कभी भी दूसरे उपाय द्वारा सन्धान को प्राप्त नहीं होता,
तदवस्थ ही बना रहता है। इसी प्रकार जो क्रोध परिणाम किसी भी जीव के
किसी भी पुरुष विशेष में उत्पन्न होकर उस भव में उसी प्रकार बना रहता है,
जन्मान्तर में भी उससे उत्पन्न हुआ संस्कार बना रहता है, यह उस प्रकार का
तीव्रतर क्रोध परिणाम नगराजिसदुश कहा जाता है।
2. पृथिवीराजिसदूश क्रोध-जैसे ग्रीष्मकाल में पृथिवी का भेद हुआ अर्थात
पृथिवी के रस का क्षय होने से यह भेद रूप से परिणत हो गई। पुन: वर्षाकाल
में जल के प्रवाह से वह दरार भरकर उसी समय संधान को प्राप्त हो गई। इसी
प्रकार जो क्रोध परिणाम चिरकाल तक अवस्थित रहकर भी पुन: दूसरे कारण
से तथा गुरु के उपदेश आदि से उपशमभाव को प्राप्त होता है वह उस प्रकार
का तीव्र परिणाम भेद पृथिवीराजि सदृश जाना जाता है।
3. वालुकारीज सदूश क्रोध-इसे उदाहरण द्वारा समझाते हुए कहा है कि
नदी के पुलिन आदि में वालुका राशि के मध्य पुरुष के प्रयोग से या अन्य
किसी कारण से उत्पन्न हुई रेखा जैसे हवा के अभिघात आदि दूसरे कारण द्वारा
शीघ्र ही पुन: समान हो जाती है अर्थात् मिट जाती है, उसी प्रकार क्रोध
परिणाम भी मन्दरूप से उत्पन्न होकर गुरु के उपदेश रूपी पवन से प्रेरित होता
हुआ अत्तिशीघ्र उपशम को प्राप्त हो जाता है। वह क्रोध वालुकाराजि के समान
कहा जाता है।
4. उदकराजिसदूश क्रोध-इसी प्रकार उदकराजि के सदृश भी क्रोध जान
लेना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इससे भी मन्दतर अनुभाग वाला और
स्तोकतर काल तक रहने वाला वह जानना चाहिए। क्योंकि पानी के भीतर
उत्पन्न हुई रेखा का बिना दूसरे उपाय के उसी समय ही विनाश देखा जाता
है।
इसी प्रकार मायाकषाय को भी सोदाहरण समझाते हुए कहा है कि-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...