राजगृह | Rajgrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजगह यात्री फाहियान ने भी नवीन राजगृह को बसानेवाछा महाराजा अजातशत्रु ( कूणिक--श्रेणिकपुत्र ) को माना है पर यह कथन श्रांतिपूर्ण है क्योंकि अजातशत्रु-कोणिक, पिता को केदुकर, चिरकाठ तक राजू को अपनी राजधानी नहीं रख सका था कारण पिता की आत्मघातके द्वारा हुई मृत्यु के शोक व॒पश्चाताप से संतप्र कोणिक को राजगृह में रहना असझ् हो गया और उसने अंगदेश को राजघानी चंपा को जिसे महाराजा श्रेणिक ने मगध में मिछा लिया धा-अपनी राजघानी बनायी । बौद्ध श्रन्थ मज्किम- निकाय में आजातशत्र द्वारा राजगृह के गढ़ निर्माण का उल्लेख है । राजगृह की तरह चंपानगर भी अत्यन्त समृद्धि और श्रमण संस्कृतिका केन्द्र था। अजातशत्रु-कोणिक की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उदायी ने वहाँ से हटाकर अंग व मगधघ की राजधानी पाटछिपुत्र ( पटना ) को बनाया । आजकल यह सारा प्रदेश बिहार प्रान्त कहलाता है । भगवान महावीर व बुद्ध तथा उनके अनुयायी-वग के बिहार होने तथा बोद्ध बिहारों की अधिकता के कारण सारे प्रान्त का ही नाम बिहार पड़ गया । भगवान महावीर के समय राजगृह परम समृद्ध और बेभवशाछी नगर था। जेनागमों व इतर भन्थों में इस पाच




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