वृन्दावन विलास | Vrindavan Vilas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूषशसशनणथटररकररणण न
जीवनचरित्र । कक
आरामें आप प्रायः आया जाया करते थे । बहांके बाबू परमेष्टीदास-
जीसे आपका विशेष धर्मख्रेद था । उन्हें कवितासे अतिशय प्रेम था 1
अध्यात्मशाक्षोंके ता भी आप खूब थे । इनके विषयमें कविवरने प्रवच-
नसारमें लिखा है;---
है... संबत चबौरानूमें सुआाय । आरेतें परमेीसहाय ॥
री अध्यातमरंग पगे प्रवीन। कवितामें सन निशिदिवस छीन ॥
एन सज्नता गुन गरुवे गंभीर । कुछ अग्रवाल सुविज्ञाल धीर पं
के... ते मम उपगारी मथम पुर्म | सांचे सरधावी दिएव. अं...
मी. आराके बाचू सीमंघरदासजीसे भी आपकी धर्मचचा हुआ करती थी ।
डा संवत् १८६० में जब कविवर काशीमें आये थे, उस समय वहां जै-
नधर्मके श्ञाताओंकी अच्छी शैठी थी । आइतरामजी, सुखलालजी सेढी,
ग बकसूरालजी, काशीनाथजी, नन्हूंजी, अनन्तरामजी, मूलचन्दजी, गोकुछ- &
चन्दजी, उदयराजजी, गुलाबचन्दजी, भैरवप्रसादजी अग्रवाल, आदि
अनेक सल्न धर्मात्माओंके नाम कविवरने अपने भन्थोंकी प्रदास्तिमें दिये पे
हैं । इन सबकी सतसंगतिसे हो कविवरको जैनधर्मसे रीति उत्पन्न हुई थी ३
और इन्हींकी प्रेरणासे श्रन्थोंके रचनेका उन्होंने प्रारंभ किया था । बाबू /
युखलालजीको तीस चौवीसीपाठकी प्रशस्तिमें कविवरने अपना गुरु ब- 7.
तलाया है;--
! *पकाशीजीसें काशीनाथ मूछचन्द नंतराम,
नन्हूंजी गुछाबचन्द प्रेरक प्रमानियो ।
क सदां घ्मचन्दनन्द शिष्य खुस्खलाखूज़ीको,
बून्दावन अग्रवाल गोलंगोती वालियो ॥”” )
बादू उदयराजजी रूमेचूसे कविचरकी अतिशय श्रीति थी । अपने भ्- :
न्थोंमें उन्होंने उनका बढ़े आदरसे स्मरण किया है;---
“सीताराम इनीस तात, जसु मादु हुछासरो ।
शाति छमेचू जनधघर्मकुठ, विदितत प्रकासों ॥
तनु कुछ-कमकू-दिनिंद, झाव मम उद्यराज वर ।
जध्यातमरस छक्के, मक्त लिंगवरके दिदतर ॥”
नकेफ्रिनईखिन नजदीक न जया वाणागााएं ट
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