आदर्श भाषण - कला | Aadarsh Bhashan - Kala

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Aadarsh Bhashan - Kala by यज्ञदत्त शर्मा - Yagyadat Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भापण छोर चक्ता रे तो यह कि जो विषय बह झपने सापण के लिए. चुन रहा है बह कया हे आर उस चिपय का उसके पास कितना शान-भणडार है । थरिना इन दो चातों पर ध्यान दिये कोई भी जन-वक्ता कभी झपने उद्देश्य की पृतति में सफल नहीं हो सकता । मैंने ग्रनेकों व्याख्यान सुने हूं ओर बड़े-चड़े वक्ताओं को देखा है कि वह मंच पर पहुँच कर भापण की टरक में ऐसे बहकते हैं कि विपय दोर विपय की विवेचना से सम्चन्घध विच्छेद कर. झपनी मन-मानी गाथाशों या कहानियों पर इस तरह फेलते हैं दि श्रोता चाहे उस समय उनकी लस्छेदार भाषा में वदता चला जाय परन्तु सार तत्व की बात उनके ठछुद् दाथ-पतल्ले नहीं पड़ती । गीता पर भाषण देते हुए बाल- कृप्ण का वर्णन करते श्र गाँधीजी पर भापण करते समय इंसा, मूसा। आर मसीहा तक दोइ लगाते मंने चक्ताओं को देखा श्र सना है । परन्तु भाषण के अन्त में पाया कि वास्तथ्रिक तथ्य के प्रिय में वक्ता केवल इघर-उधर कुछ संक्रेत भर कर देने के झ्रतिरिक्त द्ोर कुछ नहीं कह पाया । इसलिए उस विधय- विपयक चानकारी श्रोताओं की घ्पूण ही बनी रही श्र जिस उद्देश्य वी पूर्ति के लिए वद्द मापएण सुनने पहुँचे श्र अपना समय नष्ट किया वह स्यों-की -त्यों ही रह गया | वक्ता को चाहिए कि व इस प्रकार के द्व्यवस्थित भाफण करके जनता का श्रोर दपना समय नष्ट न करे । इस यकार के भाषणों से वक्ता को ख्याति के स्थान पर उलटी द्दनामी ही प्राप्त होगी । वक्ता को मापण देते समय श्पना श्रसली विए्य दिमाग से इघर-उधर गिरा नहीं देना चाहिए | उसे चाहिए कि वह विपय को उसकी व्याख्या के साथ श्रपने मसस्तिप्क में फेलाकर विस्तार के साथ जोये | झ्पने दिपय के समथन में जो कुछ भी प्रमाण वह प्रस्तुत करे उनकी पुष्टि के लिए उसके पास निश्चित घटनाएँ. श्र सचाई भी दोनी चाहिए कि जिनकी कड़ी लगाता दुआ वह शपने श्रोताओं पर छाता चला जाय ! मापणु-कला के इस महत्वपूर्ण रदस्य को भुला कर चलने बाला वक्ता कमी भापणु- कला का सफल कलाकार नहीं चन सकता । विविध विषयों का यिस्तृत ज्ञान होना किसी जन-वक्ता के लिए निन्तात श्रावश्यक हैं । वक्ता चाहे नया दो या पुराना, व्यावहारिक हो या. व्यापारिक, उसे चाहिए. कि वह दपने विफय तक ही सीमित रहने का प्रयत्न करे झ्रार उस विएय की ्रपने श्रोताओं के सम्मख जितने भी विस्तार के साथ व्याख्या कर सके, करे । इसी से उसकी वक्‍्तव्य-कला की उन्नति होगी श्रोर उसके भापण को चल मिलेंगा । वक्ता को चाहिए कि बद्द मंच पर जाने से पृ विषय को परखना: उसकी सम्मीरता को कायम रखना; उसको पूर्ण जानकारी को सप्रमाण थोड़े में प्रस्तुत करने का प्रयत्न करना; उसकी तारीख, हिसाब, घटनाएँ श्ौर सूचनाएँ अधिक से अधिक खोज कर जनता के सामने लाना; श्रावश्यक बातों को प्रस्तुत करना तथा




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