प्रबन्ध - सागर | Prabandh - Sagar

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Prabandh - Sagar by यज्ञदत्त शर्मा - Yagyadat Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी-गय का विकास ५ तुले विचारो का सामजस्य करना होता है । हिन्दी का निबन्ध-साहित्य सस्कृत-साहित्य की देन न होकर पूर्णतया श्रग्रेजी की देन है, यह स्वीकार करने मेँ मारतीयता-प्रेमियो को सकोच नही होना चाहिए । सस्कृत-साहित्य मे इस प्रकार के निबन्धो का कही पर भी उल्लेख नही मिलता । निबन्ध शब्द का श्रथं प्राचीन साहित्य मेँ जोढने या वांधनेसेथा । श्राजकल इस शब्द का प्रयोग भ्रग्रेजी (888४) के लिए होता दहै । निबन्धः का श्र्थं केवलं परिमाषा में यही सम लिया गया है कि यह्‌ सहित्य कावह्‌भ्रगहैजो विचारो, मावो श्रौर उनके स्पष्टीकरण को एके सूत्र में बाँध ले । लेख, प्रवन्ध श्रौर निवन्व ये तीनो शब्द भ्र्थों में कुछ-न-कुछ समानता रखते हं । भ्रन्तर केवल इतना ही है कि निवन्व से प्रवन्ध शब्द भ्रधिक व्यापक है भौर प्रवन्ध से लेख श्रौर भी श्रधिक व्यापक । रचना शब्द श्रपनं श्रन्दर वही श्रथं रखता है जो श्रग्रेज़ी शब्द कम्पोज़ीशन (07100810) काहे) शब्दो का वाक्य मै वह्‌ गठन, जिसका श्रं स्पष्ट हो भ्रौर सुगमता से सम में श्रा सके, “रचना” कहलाता है । इसीलिए यह शब्द ऊपर दिये गये समी शब्दो के साथ प्रयुक्त हो सकता है जैसे--प्रबन्घ-रचना, कविता- रचना इत्यादि ।




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