जैन सिद्धान्त दीपिका | Jain Siddhant Deepika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
420
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १० 3
तत्सम्बन्धी ध्न्यान्य तथूयोंके साथ परिपूर्ण वर्णन है । तृतीय प्रकादामें इन्हीं
का समुचित विस्तार है। चतुथे प्रकादामें कमोंके रहस्यका श्रोर उनका
जीवोंके साथ सम्बन्ध व जीवों पर उनके प्रभावका वर्णन किया गया है ।
जैन दर्शनके कमंवादको समझना श्रत्यघिक कठिन हूँ क्योंकि कमंके मौलिक
स्वरूप भौर जीवों पर इसके प्रभावके सम्बन्धमें भारतके अन्य दर्शनोंके साथ
इसको समानता नहीं के बराबर है और इसकी ( जेन-कमंवा दकी ) अपनी निजी
विदोषता है । में इस पुस्तकका अत्यधिक ऋणी हूँ, जिसके पढ़नेसे मेरी समभ
परिमाजित हुई और मेरी उलझन दूर हुई, जिसे मेरा बबतकका साहाय्यरहित
अध्ययन दूर नही कर सका । पंचम प्रकाश अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । मेरी समभमें
मुक्ति पर जो कमं-पुदुगलोंके बन्धनसे छुटकारा पानेमें निहित है, इसमें जो
प्रचुर प्रकाश डाला गया हूँ, वह अनुपमेय है । इसमें प्रासंगिक रूपसे गुण-
स्थानों--आत्म-विकासके क्रमिक स्तरोंका भी विवेचन है, जो पूर्ण रूपसे
अमष्टम प्रकाशमें वर्णित हें । जैन-प्राचार-शास्त्रका तो इसमें अत्यल्प स्थान में
ही पुर्णे उल्लेख है। षष्ठ और सप्तम प्रकाशमें महाब्रतोंकी विवेचना हूँ।
ये ( दोनों प्रकाश ) घ्म॑ और आचारसम्बन्धी सत्-असत् कार्यों, जिनका
आधुनिक समाज-सुधारकों तथा विद्व-प्रेम-प्रवृत्त व्यक्तियोंके लिए भारी महत्त्व
है, के स्पष्टीकरणकी दृष्टिसि अति विलक्षण हें । भ्रष्टम प्रकादमें गुणस्थान,
जिनको समभकना एक चिन्तन-परायण भौर अध्यवसायो विद्यार्थीके लिए भी
दुरूह है, वर्णित है। इस विषयके परिपुर्ण ज्ञानके लिए जन कर्मवादके
बुहत्काय मूल-ग्रन्थोंको पढ़ना अपेक्षित होता हूं। परन्तु यह विषय अत्यधिक
जटिल हूं और इन ग्रन्थोंमें इसका वर्णन इतना! विस्तोरणे, लम्बा श्रौर शाखा-
प्रशाखामय है कि विद्यार्थीके लिए यह बहुत संभव हूँ कि वह वृक्षोंमें उलझ
वनको भूल जाय--शाखा-प्रशाखाश्रोंमें पड़ मूलसे दूर चला जाय । जैन
दशनके एक निष्पक्ष विद्यार्थीके नाते में यह मानता हूं कि इस जटिल विषय
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