क्या धर्म बुद्धिगम्य है | Kya Dharm Bhuddhi Gamy Hai

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : क्या धर्म बुद्धिगम्य है  - Kya Dharm Bhuddhi Gamy Hai

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

Add Infomation AboutAcharya Tulsi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
धर्म का अर्थ है विभाजन का अन्त आज धर्म और कर्म की समस्या वड़ी जटिल हो रही है। कर्म इतना वढ़ रहा है जितना आवश्यक नहीं है । ध्रर्म इतना क्रीण हो रहा है जितना नहीं होना चाहिए । औद्योगिक युग है । उद्योग कर्म पर टिके हुए है। कर्म वढ़ता है तो चढता हे, पर धर्म को शीण क्यो होना चाहिए? कर्म उसका विरोधी नहीं हे। वह तो उसका पोपक है। कर्म वढ़ता है, तब धर्म की अपेक्षा अधिक अनुभूत होती है । फिर प्रश्न होता है-धर्म क्षीण क्यो हो रहा है? अपनी दृष्टि से कहूं तो यहीं कह सकता हूं कि धर्म क्षीण नहीं हो रहा है। क्षीण हो रहा है साम्प्रवाविक आग्रह, अभिनिवेश ओर संकीर्ण मनोभाव, जो धर्म था ही नहीं । जब ही धर्म सम्प्रदाय मे अटक गया तय से ही गतिहीन हो गया । चुत धार्मिक ऐसे हे जो धर्म के नाम पर कुछ और ही कमाते है। धर्म की आराधना के लिए सम्प्रदाय वने। धर्म प्रधान रहा और सम्प्रदाव गीण। काल-परिपाक से उलटा हो गया-सम्प्रदाय प्रधान हो गये, धर्म गीण । धर्म का सन्देश धा-पेम, मंत्री और समता। सम्प्रदायो में विकसित हुए-चैर, चिरोध और विपमता । धर्म का सन्देश धा-तुम सब समान हो या एक हो क्योकि तुम सब एक ही या एक-जेसे ही चतन्य से अभिन्‍न हो । सम्प्रदाय से फलित हुआ-तुम सव अलग-अलग हो, क्योकि तुम्हारा धर्म मिनननभिन्‍न है। तुम जन हो, तुम शेव हो, तुम चेण्णव हो और तुम चीद्ध हे सादि-लादि। धर्म प्य उद्देश्य घा-सव अविभक्त हों। सम्प्रदाय का !पय हो गया विभक्तीकरण । आज समूची मनुष्य जाति संख्या में चटी हुई ह-टतने करोड ईसाई र, इतनें फरोर दोद्ध है, एसमें तने करोड हिन्दू है, इनने करोड मुसलमान है जार रनने सन सादि-लादि। भोगोलिव सीमा, जाति आदि ने मनुपष्य-जानि चर न्फ प्लस पे इज अन लग नल घ्म फउ रूपए 7 बस बजकर पी अद




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now