अछूत - समस्या | Achhut - Samasya

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Achhut - Samasya by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कूपूत-्रपा बीर उसकी दिपसत एं, ७ चाडर में सारर रसो 1 इससा फारण उन्दोंने पद सदराय शि बेर नहों घाइते दि, जनता के सन में इस प्रसार का डा मी संदेद हो हि दद मुझे तथा मेरे साथियों को मर्यादा- भाए परना प्वाह्ने हैं 1 इस पक घटना ने मेरी नररों में बारी साहय को यहुन ऊँचा उठा दिया । कस पु, एानयान की बात पर इतने बिस्तर के साप इसीशरने बोड गया कि; मैं आपके सामने पद स्पष्ट कर देना घ्वाहता हूँ कि आपके ( अटूनी के ) साथ या इस फिपय में किसी दूसरे फे साथ ब्यवद्धार में कोई पास दर्गिश नहीं बर्तना चादता । मे आपको अंधकार में रना या झूठा खाणच दिडायर अपना समर्थन प्राप्त फरना नहीं चादता। म अदत-रपा फो इसटिये उदा देना चाहता हैं कि उस मूहोष्ठेदन स्वणम्यद्राप्ति के दिये अनियर्य है, और मे स्वरास्प चाइना हूँ । पर अपने किसी राजनीतिक उद्देश्य वी पूर्नि के छिये से आपको नदी मिठाना 'चादता । मेरे सामने जो प्रश्न है, वह स्वास्प्य से मा अधिक वड़ा है। मैं अय्तद्रषा का इसटिये अंत वरना चाटता हूँ कि यदद आत्मयुद्धि के ठिये आवश्यक दि । अछतों की शुद्धि की कोई सदश्यपता नहीं है, यदद निर्र्यक बात है, किंतु स्वयं मेरी तथा हिंदू-घर्म की शुद्धि अभी हैं । दिंदू:घर्म ने इस दूपण की धार्मिक आजा देवर एक वड़ा भारी पाप किया है, और में अपने इारीर पर दी ओदकर इस पाप वा प्रापश्चित्त करना चाहता हूँ ।




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