वेद में स्त्रियों | Veda Me Istriya

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Veda Me Istriya by गणेशदन्त शर्मा 'इन्द्र' - Ganesh Dant Sharma 'Indra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पु चेद में खियाँ यहुधा देखा गया है कि गूद-देवियाँ अपने हाथों से रोटी बनाना, तथा अपने यर्धों को खिछाना,भी अच्छा नदी समझती ! यदद बहुत ही चुरा है । ऐसी आरामतख्यी का भयक्र परिणाम खिपों को प्रसूत काल के चक्त भोगना पड़ता है । यहाँ तक कि जीवन से भी हाथ धो बैठने की नौवत का जाती है । पानी लाना, घर के सय कामों में अत्यन्त सिदनत का काम है, इस लिए बेद कहता है कि “घड़ा उठा कर घर का पानी भरो।” प्रयेक ग्रह के साथ दी साथ एक छोटी सी पुप्प-वाटिका भी होनी /चादिए, जिसे सैंदारने का काम यूदिणी के हाथ में दो । पहले जमाने में ऐसा ही होता था । ख्ियाँ वारटिफा को सींच कर उन्दें हरी-भरी रकया करती थी । जिन्होंने शकुन्तटा का आख्यान पढ़ा हैं, उन्हें हुस वात का अच्छी तरद पता हैं, कि, दाइन्तला गपने हायों से ही पुष्प वाटिका के बरूक्षों को पानी पिठाया करती थी । थूप्ों को पानी पिंछाने में मनोरश का मनोरजन और साथ छी काफी परिश्रम भी हो जाता है । खियों को चाहिए कि शूदद-कार्यों में कदापि सुस्त न रद करें । ध ब (२) भोजन बनाना । छ शुद्धाः पूता योपिंतो यश्षिया इमा छापसरुमव- सर्पन्तु शुभ्नाः। श्र घजां चहुलान पशन नः पक्तीदनस्य सुछतामेतु लोकस्‌ 1 अथर्य० ११ | १ 1३७ प्र *. ( झुद्धाः 9 शुद्ध ( पताः 2 पतिद्र ( झुझ्ार ) और शुश्र वर्ण वाली ए यज्ञिया ) पूजनीय ( इमा' योपित' ) ये खियाँ ( आप चर ) जठ और लन्न के कार्य में ( अवसपेन्तु » प्राप्त हों । ये खियाँ ( नः ) हमें (पर्जों > सन्तान ( नम्दु » देती हैं तथा ( बहुलान्‌ पशून्‌ चुत 'सशुओों को .सँभाउती हैं । ( भोदनस्व पक्ता 'बावछ श्ादि अन्न का




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