कृपारसकोश | Kriparaskosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
103
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जगडयकाव्यक मैं लिखा है कि--अकबर बादशाह णक दिन
कलहपुर के झाही महल में बैठा हुआ राजमान का निरीक्षण कर
रहा था | इतने में एक बड़ा भारी जुलूस उस की नजर नीचे हो
छर निकला जिस में पक सी सुन्दर वख पहने हुए और फल
फूलादि के कुछ थधाल सामने रख हुए, पालस्री में सवार हा कर
जा रही थी | बाददाह ने यह देख कर अपने नोकरो से पूछा कि
यह कौन है और कहां पर जा रही है ? जबाब में नौकर्ों नें अ्ज
की कि यह कोई जैन श्रीमन्त शाविका+ है जिसने छः महिने के
कडिन उपवास किये हू। इन उपयासो में केवल गर्म पानी पीने
के खिवा--सो भी दिन ही में-आोर कोई भी चीज मुंह में नहीं डाली
जाती हैं । आज जैनघर्म का कोई त्योहार ( पर ) हैं इस छलिय,
ज़नमंजदिर में दीन करने के लिये इस उत्सव के साथ जा
रही है । बादशाह को यह सुन कर आश्यर्य हुआ: परतु इस बात पर
विश्यास नहीं जाया | उसने तुर्म्त थाई को अपने पास बुलाया और
उसकी जाउति तथा चाणी का ध्यान पूर्वक निरीक्षण किया। यद्यपि दाई
के तेजस्वी चदन और निर्दोष चयन को देस्ख-सुन कर उसे, उस के
चविचय मे बुत कुछ सत्य प्रतीत हुआ तथापि पूरी जॉच करने के
ज़ाका दी | साथ में विश्वास नीकरों ं
की दिनययोा का बड़ी सावधघानी के साथ अवलोकन किया जायें
आर यह क्या खाती-पीरती है इस की पृदी तलायस ली जायें |
चाई सहिना डेढ़ घहिना इस तरह की जोव-पड़ताल करते निकल
है न्श् नव कक कह #ा
* यह काव्य, शरीदारविजयसूरि अकबर के दरबार से वाफ्य लौट कर जब
गुजरात की भोर भा रह थे, तब उन के आगमन के समाचार को सुन ऋर पंडित
पशसागरणागि ने, काटियाबाद के मंगलपुर ( मांसलोर ) में---संबतू १६ ४६ कं
आस पास--रच कर, सुरिजी को मैंट के रूप में भपण किया था !
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कप मालय दया डर
के इस का नाम अन्यान्य प्रबंधो में * चेणा * लिखा इ आर कट धानविंद,
जों अकबर का मान्य साहुकार था, के घराने में से बताई गई हूं
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