भगवान परशुराम | Bhagwan Parshuram

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Bhagwan Parshuram by कन्हैयालाल मुन्शी - Kanaiyalal Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अआसख ्‌्झ् श्रमी विक्रमादित्य के प्रादुर्भाव में पन्द्रह सी चर्प का घिलम्ब था 1 सिकन्दर का श्राक्रमण श्रसी भावी के गर्भ में था--श्रौर उसी प्रकार ब'रह सौ चर्प श्रोर भी बीतने थे । चुद्ध भगवान्‌ का जन्म होने में श्रभी *. सह्र वर्ष का विलम्व था; महाभारत के युद्ध के लिए श्रभी फई च्दियाँ वीतनी थीं । श्राज जो ध्रार्यावते- है चह तब नहीं था । पंजाव उस समय सप्तसिघु ता था । श्राज जिस नदी का चिह्न तक श्रवदोप नहीं, उस विद्व्ता पनी सरस्वती के विशाल तट पर बशिप्ठ, विश्वामित्र, भेसु श्रौर ' श्राधम फंले हुए थे । नसिघु में श्रायों की सिरन-भिन्‍न जातियाँ हंप से प्रेरित होकर एक-टूसरे से मार-काट करने पर तत्पर हो रही थीं । दो महात्मा एफ- दु्तरे से वदफर ले रहे पे--एफ थे सिष्ठ, दूसरे दे चिधचािन्र १ चकिप्ठ थे तृत्सुध्नों के राजा सुदास के गुरु । दासों के राजा दिवोदास का पुत्र भेद, राजा सुदास के सम्चन्धी की स्त्री दाशियसी को उड़ा ले गया था । एक दास श्राय राज-फन्या को उठा ले जाप यह फार्प चशिष्ठ को श्रघर्म जान पड़ा श्रौर भेद पर उग्र प्रकोप फरके उन्होंने श्रार्यो की एक विशाल सेना खड़ी की । भेद ने जाकर पुरु्रों के राजा कुत्स की शरण ली । उसने दस राजाझों का समूह एकचित किया श्रौर घिश्वामित्र नें उनका गुरुपद स्वोकार किया 1 श्राज जहाँ राजपुत्ताना है वहाँ स्थान-स्थान पर सरुस्थल श्रौर पानी के पोखर फंले हुए थ। जहाँ झाज बंगाल है चहाँ वड़ी-बड़ी नदियों के




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