मेरी मुक्ति की कहानी | Meri Mukti Ki Kahani

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Meri Mukti Ki Kahani by रामनाथ सुमन - Shree Ramnath 'suman'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरी सुक्तिकी कद्दानी. १६८ कविनाके - और जीवनके विकासके संवंव्म इस तरहका विदवास एक प्रकारसे धर्म थो और में उसका पुरोहित । उसका पुरोहित होना बड़ा सुखद और, लामदायक था । मैं बहुत दिनोंतक. इस धघर्मको, 'उसके श्रौचित्यमें किसी तरहका संदेह किये घिना, मानता रहा । किन्तु इस जीवनके दूसरे श्रौर विशेष रीतिसे तीसरे सालमें में इस घर्मकी निर्धात्ततापर संदेह करने लगा श्रौर मेने उसकी जांच करनी भी थुरू कर दी । इस संदेहका पहला कारण यह था कि मेंने देवा कि इस धर्मके सब पुरोहित श्रापस्तमें एक राय नहीं रखते । कुछ कहते थे : हम सबसे अ्रच्छे श्रौर उपयोगी दिक्षक हैं; हम वही शिक्षा देते हें जिसकी ग्रावदयकता है । दूसरे गलत शिक्षा देते हैं । टूसरे कहते : नहीं, श्रसली शिक्षक हम हैं; तुम गलत दिक्षा देते हो । श्रौर वे एक-दूसरे से लड़ते-भगइते, गाली-गलौज करते श्रौर घोखा देते थे । हममेंते वहुतरे ऐसे भी थे जिनको इसकी परवा न थी कि कौन सही है श्र कौन गलत; वे सिर्फ हमारी इन कार्रवाइयोंके जरिये अपना मतलब साधने में लगे हुए थे । इन सब वातोंकी वजहसे में भी इस घर्मकी सच्चाईमें संदेह करनेको विवद्य हो गया । इसके श्रतिरिक्त लेखकोंके घर्म-मतमें इस तरह संदेह करना गुरू करनेकें वाद मैं उसके पुरोहितोंपर भी ज्यादा वारीक नज़र रखने लगा श्रौर मुझे पक्का विश्वास हो गया कि इस घर्मके करीव-करीव सब पुरोहित, लेखकगण श्रसदाचारी श्रौर श्रधिकतर दुश्चरिघ एवं श्रयोग्य हैं तया उन लोगोंसे भी नीचे हैं जिनसे में अपने पहलेके भ्रप्ट श्रौर सेनिक जीवनमें मिला था । वे श्रात्म-विर्वासी एवं श्रात्म-संतुप्ट थे भ्रौर ऐसे वे ही श्रादमी हो सकते हैं जो बिल्कुल पवित्र हों या फिर जो जानते भी न हों कि पचित्रता किस चिड़िया का नाम है । इन प्रादमियोंसे मुन्ने घुणा होने लगी; मुझे स्वयं श्रपनेसे घृणा हो गई और मेने श्रनुभव किया कि यह मठ सिफफ॑ घोखा-बड़ीके सिवा कुछ नहीं हैं । लेकिन ताज्जुव है कि यद्यपि में इस घोवेवाजीकों समक शौर छोड़-




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