जैन जगती | Jain Jagati

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Jain Jagati  by दौलतसिंह लोढ़ा - Daulatsingh Lodha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैन-जगती 'जेन-जगती' वास्तव में जेन-जगत्‌ का. त्रिकाल-दर्शी- दपस्प हूं । सुकबवि ने प्रसिद्ध 'भारत-भाग्ती' की शंली पर जन समाज्ञ को ठीक कसा टी पर कसा है । कट उक्तियां रुढ़ि चुर्त साधुष्यों छोर श्रावकों को चोकान वाली हैं । कहीं-कहीं शब्दों के झत्यंत कम प्रचलित पर्यायबाची रूप श्माने से साधारण श्र शी क पाठकों. को सहसा रुकना पढ़ेगा: किन्तु जो लोग तनिक धीरज से क्राम लकर श्माग बढ़ गः वे इस पुस्तक में स्साम्त क. शलोकिक ानंद का आस्वादन करेगे | “बर विंद' कवि की यह प्रधम कृति समाज की एक छामलि- बाय्य आवश्यकता की पूति करती है ; इसके अतिरिक्त मुझे कवि के अन्य सावजनिक थिपयों के बड़-छोट कई पथ-ग्र थों को ( अप्रकाशित रूप में ) पढ़ने ओर सनन का साभाग्य भी प्राप्त हृद्मा है | इस अनुभव के आधार पर मे कह सकता हूँ कि यदि जनता न कॉव की कृतियों को अपनाया तो “अरविंद के रूप में एक लोक-संबी कवि का उसे विशष लाभ प्राप्त होगा । जन-जगती' जागृति करने के लिय संजीवनी-वटी है । फल हुय आडम्घर एवं पारूड को नेश्तनाबृद कगने के लिय बम्ब का गोला हे । समाज के सब पहलुष्मों को निर्भीकता पूर्वक छुच्मा गया हैं। पुस्तक पढ़न आर संग्रह करने योग्य है । ज्ञान-भंडार जोधपुर ? श्रीनाथ मोदो 'हिन्दो प्रचारक आ० कु० १३-६८. है




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