कन्या | Kanya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ कन्या
पर तुम इसे पसन्द करो या नहीं और तुम्हारे माता-पित्ता चाहे
................ जितनी सुखद कल्पनाएँ करें, केवल इच्छाों
.. माता-पिता की आर कल्पनाओं से जीवन की कठिनाइयाँ हल
जिम्मेदारी नहीं होतीं, न इससे ग़रहस्थियाँ स्वर्ग बन सकती
.............. हैं।यदि लड़कियों के गुरुअन सचमुच उन्हें सुखी
बनाना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए शुरू से कठिन श्रम करना
'पढ़ेगा । मैं मानता हूँ कि कन्या को ऐसी बनाना कि उसका भावी
जीवन सुखमय हो; ससुराल में; समाज में उसका यश बढ़े और
_ उससे माता-पिता के गौरव की ब्रद्धि दो, बिल्कुल माता-पिता के
बस में हे । इससे घन का भी कोई सम्बन्ध नहीं । गरीबी के बीच
भी अच्छे संस्कार डाले जा सकते हैं । पर इसके लिए पहली बात
सो यह करनी होगी कि समाज में कन्या का सहत्व समझ कर
उसके प्रति उपेक्षा तथा उसकी शिक्षा-दीक्षा के अति उदासीसता का.
जो भाव है उसे हटा देना होगा। झनेक बार मैंने सुशीला माताओं
को कहते सुना है कि “क्या लड़को को बकील-बारिस्टर बनाना
-है, इतना :पढ़ाकर कया होगा ?” यदि इसमें बिन पमके-बूके
स्कूली शिक्षा देते जाने के प्रति व्यज्ञ है तो मैं उसे समक सकता
हूँ ; शायद एक सीमा तक इस प्रकार की ाशक्का को क्द्र भी कर.
सकता हूँ पर मैं ऐसी माताछों और ऐसे पिताझओं से कहईँगा कि
_ लड़कियों को जीवन में उससे ज्यादा महत्वपूर्ण काम करने हैं.
और उससे ज्यादा ऊँची श्रौर जरूरी जिम्मेदारियों का पालन
“करना है जितना दर लाड़ले पुत्रों और भावी 'बैरिस्टरों' से
कल्पना को जा सकती दे । लड़कियों के विषय में दो बातें नहीं
. शूलनी चाहिए । पहली यह कि वे शूददशी होंगी, घर का प्रबन्ध,
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