महाकवि आचार्य विद्यासागर ग्रंथावली खंड 2 | Mahakavi Acharya Vidyasagar Granthawali khand 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : महाकवि आचार्य विद्यासागर ग्रंथावली खंड 2  - Mahakavi Acharya Vidyasagar Granthawali khand 2

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य विद्यासागर - Acharya Vidyasagar

Add Infomation AboutAcharya Vidyasagar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सर संस्कृति को काल के थपेड़ों एवं साम्प्रदायिकता के मद में चूर सत्ता के प्रहारों ने विकृत कर दिया था, जिससे श्रमण संघ की आदर्श रूप आराध्य-आराधक पद्धति भी अपने उच्चासन से च्युत हो गयी अत: इस विकृत रूढ़ि के निवारणार्थ आप श्री ने स्पष्ट घोषणा की, कि परिग्रह के सद्भाव में कोई भी व्यक्ति अथवा साधक पूजा का पात्र नहीं हैं। निष्परिग्रही मुनि ही पूजा के पात्र हैं अर्थात ऐलक, क्ुल्लक और आर्यिकाएँ, क्षेत्रपाल, पद्मावती आदि असंयमी जीव परिग्रह के सदभाव होने से परिक्रमा, पाद- प्रक्षालन एवं अष्ट-द्रव्य से पूजन के योग्य नहीं हैं - अत: आपने अपने संघ में ऐलक, क्षुल्लक एवं आर्यिका गण को इस विकृत रूढ़ि से बचाकर आदर्श, आराधक पद्धति को सुरक्षित किया है । ऐसे आदर्श आचार्य का जन्म दक्षिण के कर्नाटक प्रान्त के बेलगाँव जिले के सदलगा ग्राम में आश्विन शुक्ला पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) 2003 विक्रम संवत्‌ गुरुवार को रात्रि 11.30 बजे हुआ था । गुरुवारी पूर्णिमा मानो संकेत कर रही हो कि यह बालक गुरु बनकर पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान विश्व को शीतल-किरणें प्रदान करेगा और संसार की उष्णता को शान्त करेगा । इन का जन्म नाम विद्याघर रखा गया, जो इंगित करता है कि विद्याघरों के समान यह सारे भारत में विहार करेगा एवं मुक्ति की सद्विद्याओं का वितान करेगा । आपके पिता का नाम श्री मलप्पा जैन ( अष्टगे) था, जो बाद में मुनिवर श्री मल्लिसागर जी महाराज के नाम से जाने गये / माताजी के नाम के शुभाक्षर हैं - श्रीमती '' श्रीमती '' जो पश्चात्‌ काल में आर्यिका समयमती माताजी के नाम से जानी गर्यी । विद्यालयी ऑपचारिक शिक्षा मात्र नवमी कक्षा तक थी, महान्‌ पुरुषों की शिक्षा और प्रतिभा स्कूली शिक्षा तक ही सीमित नहीं रहती । उनकी शिक्षा का क्षेत्र तो . संसार होता है । पूरे संसार और उसके यथार्थ का अनुसन्धान करने वाली अनुभव की पाठशाला में वास्तविक शिक्षा प्राप्त करते हैं। मातृभाषा कननड़ और स्कूली भाषा मराठी होने पर भी आपका हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत , अपभंश, प्राकृत आदि भाषाओं पर पूर्ण अधिकार है । सन्‌ 1967 में आपने आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज से ब्रह्मचर्य व्रत लेकर संसार-भ्रमण का मार्ग बन्द कर दिया । तथा मोक्ष मार्ग की ओर चरण बढ़ाने के लिए आप आचार्य श्री ्ञानसागर जी महाराज के पास रहकर लगभग 3-4 वर्ष तक ज्ञानार्जन किया तथा 30 जून 1968 आषाढ़ शुक्ला पंचमी विक्रम संवत्‌ 2025 को अजमेर शहर में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के द्वारा दिगम्बरी दीक्षा धारण की । आपके गुरु ने आपको पूर्ण गुरुपद के योग्य जानकर 22 नवम्बर, 1972 मगसिर कृष्णा 2 संवत्‌ 2029 को नसीराबाद में अपना आचार्य पद आपको देकर आपके ही निदेशन में लगभग 180 दिन को यम-संल्लेखना धारण कर समाधि ली थी । आचार्य श्री हवा के समान निःसंग, सिंह के समान निर्भीक, मेर के समान अचल, पृथ्वी के समान सहिष्णु, समुद्र के समान गंभीर, जल के समान निर्मल, सूर्य के समान तेजस्वी हैं । आपने जहाँ शिरोमणी चारित्र की साधना की है वहीं पर आप साहित्य जगत्‌ में शिरोमणीभूत साहित्य साधक भी हैं । आपकी शब्द साधना ने आपको शब्द-वेधा (ब्रह्मा) बना दिया है । थ ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now