श्रीराम तिलकौत्सव | Shriram Tilakotsav

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Shriram Tilakotsav by महर्षि वाल्मीकि - Maharshi valmiki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 मुझ से अनेक मनुष्यों ने पूछ कि इस कथा प्रसंग को मैने कहां से लिया है क्योंकि ऐधी कथा न श्री वाल्मीकिजीने न थी बुलश्ीदासजीने 'अ्पनी रामायण में लिखी है फिर यह तो कहपनामात्र दै । श्रीतम चरित सौ करोड़ संख्या में है । रामचरित शत क्रोटि पारा । ही किन्तु वालमीकीय तथा लुलसीकृत्त रामायण तो. एक लाख की भी गणना में नद्दीं पहुंची । तव सम्पूर्ण रामचरित फा चर्णन उन'“देसों मस्यों के अन्तर्गंत नहीं माना जा सकता । पर शेप प्रमु चरित में यह प्रसंग भी माना जा सफत। है। दूसरे जितनी सांसारिक कार्य श्रौर क्रियाएं हैं वे सब रामचरित के 'अन्तगंत हैं। व्यथोत माया विहाश से अधिकतर भागवत मकाश है। उम्रको दीप्ति में तम रूपी जगत दब जाता है। ऐसी दशा में करपना अलग नहीं रखी जा सकती । यदि ' क्षण भर के लिये मान भी लिया जाय हि यदद प्र्नंग कल्पनामय है। बुद्धिकी दौड़ सोमित है। ौर रामयश पार है तर यदि कल्पना की भी गई तो चढ़ चरित भाग के श्स्तगैत हो तो हुई। शंका उठ सकती है कि फिर जगत घयवहदार कुछ भी ' नहीं है। सबको रामंचरित हो समझना चाहिये, जेंसे बारि- वेग-ब्रवाइ बश पानी में काय उसन्त दोता है। इसकी +दरपति जलाघातों शत्याघादों से है झोर वद जज का मलांश




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