पद्य - प्रभा | Padya - Parbha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूरदास श्र
कद वद्द ताल कहां बह सोभा देखत थूरि उड़े हैं।
माइ दंघु अर कुटुम कबीला सुमिरि सुमिरि पछ्चिते हैं ॥
बिन गोपाल कोउ नदिं 'अपनो जस अपजस रदि जे हैं ।
जो 'सूरज' इुलेभ देवन को सतसंगवि में पे हैं ॥ ६॥
( चिलावल )
ऊधो मन माने की बात । *
दाख छोद्दारा छाँढ़ि अस्त फल विपकीरा विष स्वात।
जो चकोर को देइ कपूर कोइ तजि झंगार अघात |
मघुप करत घर कोरे काठ में बेंघत कमल के पाव ॥
ज्यों पतंग दित जानि ापनों दीपक सों लपिटात 1
'सूरदास' जा कौ मन जासों सोई तवाहि सुद्दात ॥ १० ॥
( सैरवी )
कहाँ लो कह्टिये जज की घात ।
[सुन स्थाम हुम विन उन लोगनि जैसे दिवस. बिहात ॥
'गोपी सवाल गाइ ,गोसुत वे मलिन -बदन कस ग्रात ।
परम दीन जनु सिसिर हिसीदत 'अंबुजगन बिन पात ॥
[जो कहूँ 'आावत देखि दूरतें सब पूँछति झुसलात ॥
'लन न देत प्रेम थातुर उर कर. 'चरनस लपटात ॥
पिक चातक बन बसन न पावदि, बायस बघलिहिं न खाद ।
*. सूरस्याम संदेसन के डर, पथिक न उद्दि मग जात ॥१३॥
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