जैनतत्त्वसार | Jainatatvasar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३--तृतीय-अधिकार ।
डसूत छात्मा सूते कर्मोको अरहण कर सकता है ।
रच...
प्रश्न--जीव स्वयं अरूपी-झ्मूते हूं; तो फिर इन्घिय और
रे ्चदस्त-पाद वगेरठकी सहाय दिना करमेंकका ग्रहण किनके.
घ्परा कर सकता हें ? जब कोसी मनुष्यकों कोश चीज ल्लेनी देनी
पमती हूं तो पहले उस चीजकों देख नान्न कर, पीड़े हाथ वगे-
रटसे, लसे लेता देता हूं, झात्माकी अवस्था दंसी न ह्ोनेसे, वह
कर्मेको ग्रहण करता हे यह कंसे माना जाय
जत्तर--जगत्कतता-यह जगत इंश्वरने बनाया हूं, एऐसा-मानने
चाले जिस तरह इश्वरको निरिन्घिय झाौर निराकार मानकर नी,झपनी
झगम्य शक्तिघ्ारा वह नक्तोंकों देखता हु, प्राधनादि सुनता हूँ; पूजा-
. दिकास्वीकार करता है छोर नक्तजनोंक पार्पोका नाश कर;चनका न
झार करता दे; इत्यादि कीमोंका करने वाला मानते हु,तो उसी तरह,
ऋमूत आर अरूपी झात्माकों नी अपने झपएव सामथ्य ओर स्त--
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