वीतराग - विज्ञान भाग - 1 | Veetarag Vigyan Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पं. दौलतराम जयपुर की तेरहपंथ शैली में एक समादृत विद्वान थे। उन्होने वि॰सं॰ १८२३ में 'पद्मपुराण' नामक हिन्दी ग्रन्थ की रचना की जो पद्मपुराण के मूलश्लोकों का यह अनुवाद है। वे आधुनिक मानक हिन्दी के आरम्भिक साहित्यकारों में गिने जाते हैं।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). चीवसगविज्ञान-१ ) (५
मद्दानता है। अरिदन्तादिकी पूजनीयता वीतराग-विज्ञानसे ही है ।
अरिंदन्तादिका स्वरूप वीतराग-विज्ञाननय है और इस शुणके
कारणसे ही वे स्तुतियोग्य, मद्दान हुए हैं । वैसे तो सभी जीवतत्त्व
समान हैं, किन्ठु रागादि विकारसे व ज्ञानादिककी हीनतासे जीव
निन्दा योग्य होता है, और रागादिकी हीनता व ज्ञानादिकी विशेपतासे
जीव स्तुतियोग्य होता है। अरिहिन्त व सिद्ध भगवन्तोंको तो
रागादिका सर्वथा. अभाव और ज्ञानकी पूर्णता होनेसे वे सम्पूर्ण
वीतराग-विज्ञानमय हुए है, और आचाय-उपाध्याय साघुको एकदेश
चीतरागता तथा ज्ञानकी विशेषता होनेसे उन्हें एकदेश वीतराग-
विज्ञानता है ।--इस प्रकार पाचा परमेष्ठीभगवन्त वीतराग-विज्ञानमय
दोनेसे पूज्य हैं. ऐसा जानना ।
चीतसग-विज्ञान तीन भुवनमे साररूप हे । अधोछोक, मध्य-
लोक या ऊर्ध्वछोक अर्थात् नरकमे, मनुष्यलोकमे व देवलोकमे,
तीनों भुवनमे जीवोंको वीतराग-विज्ञान ही साररूप--दिंतरूप है,
वह्दी सर्वत्र उत्तम है, ' वही प्रयोजनरूप है, जैसे ' समयसार ”
'अथोत् सब पदार्थोमे साररूप ऐसा झुद्धात्मा, उसे समयसारके
मंगलमे नमस्कार किया है. वैसे यहां तीन शुवनमे सार ऐसे
वीतराग-बिज्ञानकों मंगलरूपसे नमस्कार किया है.। अहदो, बीतराग-
विज्ञान दी जगतसे सार है,--वद्दी उत्तम है, इसके सिंबाय झुभ-
राग यां पुण्य बह कोई सारूप नहीं है, बह उत्तम नहीं है,
राग-द्वेप रहित ऐसा केवठज्ञान ही उत्तम व साररूप है। धमात्मा
कफेवद्ज्ञान चाहते हैं. अत ; उसे याद, करके वंदन करते हैं और
-उसकी भावना भाते हैं।
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