सूर समीक्षा | Sur Samiksha

Sur Samiksha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ्यध्याय 3] जीवन-चरित पुर #ााणी सुरदास जी के जीवन की कुछ प्रमुख घटनाएँ सूर-अकवर-मिलन-- यद्यपि महात्मा सूरदास जी ब्रज को छोड़ कर अन्यत्र जाने में बहुत 'हिचकते थे फिर भी उनके विषय में इधर-उधर जाने की कुछ जन-श्रुतियाँ प्रचलित हैं जिन की प्रामाणिकता अभी सन्देह के गत में विलीन है । “सूरदास की वार्ता प्रसंग तीन में उनकी अकबर बादकाहद के साथ भेंट का उल्लेख सिकता दे । मकबर सदझय उदार, सदिप्णु एवं कठा-प्रेसी व्यक्ति की सूरदास जैसे महात्मा भक्त कवि के प्रति श्रद्धा होना स्वाभाविक था, किन्तु सूरदास के हृदय सें अपने उपास्य के अतिरिक्त झौर किसी का स्थान नथा। “प्रेम गठी अति सौंकरी वा में दो न समा” । “चौरासी 'चैष्णवन की वार्ता! के अनुसार दिल्‍ली से आगरा जाते समय अकबर सूरदास जी से मिला था | किम्वदन्ती है कि अपनी सभा के प्रसिद्ध गायक तानसेन द्वारा सूरदास के एक पढ के रस का लास्वादन कर अकबर सूर से मिलने के छिए छालायित हो उठा गौर उसने उनसे मेंट की भी । सूरदास जी ने अकबर के सामने जो पद गाए उनका उल्लेख सूरदास की त्तीसरी वार्ता में हुआ है । उनका पहला पद था-- “मना रे तू करि माधव से प्रीति ।” जब सूरदास जी से अकबर के विषय में कुछ याने के लिए कद्दा गया 'तवब उन्होंने यह पद गाया :-- “नाहिन रहो मन में दोर” अकबर के हृदय पर सूर की निर्भीकता और भक्ति-भावना का बढ़ा 'गस्भीर अभाव पढ़ा । सूर और अकबर की यदद सेंट कब हुई, इसका कोई पिश्चित समाधान भभी तक नहीं दो पाया । ढा० दीनदुयाछ युप्त जी का




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