एकीभावस्तोत्र | Ekibhavastotra

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Ekibhavastotra by परमानन्द जैन - Parmanand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अआया्यं बादिराज ओर उनकों रचनाएं. [ & ) रो भक्तिरसझूप-माघुयसे ओत-प्रोत है। स्तोत्र को संस्कृत मद, सरस श्र पद लालित्य को लिये हुए है। इस स्तबन का एक पद शलेबात्सक ओर हचथक भी हैं। इसके कई पथ बड़े अच्छे हैं जिनमें बड़ी खूबी के साथ क्रिमे अपने. भावों को चित्रण किया है। श्र जैनधमंकी मान्यताक श्रजुलार सच्चे देवके स्वरूपका अच्छी तरद से प्रतिपादन किया है । इस स्तोत्र की खास विशेषता यह है कि इस में श्रन्य “श्रादि- नाथ (मक्तामर) 'पाश्वनाथ' (वस्थादयर्मत्दिरि) ऋदि स्तवन की तरह किसो एक तोथ कर विशेष की स्तुति नदी ' को है किम्तु यदद सामान्य स्तुरतिग्रन्थ है। दि० जैन समाज में इसके पठन-पाठन को बहुत प्रचार है । स्तोत्र को एक घार पढ़ ऋर फिर छोड़ने को जी नहीं चाहता । पाठकों की जानकारों के लिये उसका पक पद्य नमूने तौर पर नीचे दिया जाता है।- मिध्यावाद सलमपनुदन्सप्तभगी तरकू - बागाम्भोचि भवनमखिले देव पर्ेति यस्ते । तस्याइत्ति सपदि बिवुधाश्चेत सैवाचलेन, ब्यातन्वन्त, सुचिरममृतासेवाया तृप्नुवन्ति || १८्य। श्रधात्‌ हे नाथ | श्रास्त श्ौर नास्ति श्रादि सप्तमंगरूप तरगोसे श्रथवा श्रनेकान्तकं माहोत्म्यसे-शरीरादिक बाहा पदार्था में श्वात्मत्व बुद्धिरप जीवके. बिपरोताभिनिवेशको दूर करने वाले श्रापके बचतसमुद्र को जो भव्य जीव निरम्तर बभ्यास मनन एव परिशीलन करता है--श्रागमोक्त विधि से अभ्यास कर चिसक्रो निश्चलता तथा दया-दुम-त्याग श्र समाधि की परोकाष्ठा को--चरम सीमा को--प्राप्त करता हैं चह शोघ दी मोच् को प्राप्त कर लेता है और चहां श्रब्यावाध श्ात्मोत्थ अनन्त सुख में मय रदता है । यदद सब तप के बचन समुद्र का दी मादात्म्य पवं प्रभाव हैं । कद्दा जाता दे कि. इस




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